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________________ ( २६ ) ( ६ ) छिन्दप्रशस्ति ( सप्तदश सगं ), ( ७ ) शिवशक्तिसिद्धि (अष्टादश सगं ), (८) नवसाहसाङ्कचरित ( द्वाविंश सगं ) । ' खण्डनखण्डखाद्य' में पांच स्थानों पर उनके एक और ग्रन्थ ( ९ ) 'ईश्वरा भिसन्धि' का नाम भी प्राप्त होता है । इसके अतिरिक्त संस्कृत साहित्य के अनेक इतिहासकारों ने उनके दो और ग्रन्थों के नाम दिये हैं- ( १० ) पचनलीयकाव्य और ( ११ ) द्विरूपकोष । 'नैषधीयचरित' को मिलाकर इस प्रकार श्रीहर्ष की कृतियों की संख्या बारह हो जाती है । जैसा कि कहा जा चुका है, इन बारह नामाङ्कित ग्रन्थों में केवल दो प्राप्त हैं- ( १ ) खण्डनखण्डखाद्य यह एक दार्शनिक ग्रन्थ है । 'खण्डनखण्ड' अर्थात् खाँड़ ( कच्ची शक्कर ) बा ‘खाद्य’, भोज्यपदार्थ । परंतु यह ग्रन्थ अत्यंत कठिन है । यह गन्ने से बनी खांड के समान सरल खाद्य तो नहीं हैं, जिसे सरलता से घोल कर पी लिया जाय, परन्तु इक्षुखण्ड से खांड बनाने की क्रिया के समान एक श्रमसाध्य खाद्यविषय अवश्य है; जिसमें नैयायिक पद्धति का आश्रय ले न्याय का खण्डन और अद्वैत सिद्धांत का मण्डन किया गया है। माना जाता है कि सोलहवीं शती में शंकर मिश्र का 'वादविनोद' इसी पद्धति पर रचा गया। इस ग्रन्थ में यह माना गया है कि आत्मा अज्ञेय है, परन्तु उसकी सत्ता है । कोई पदार्थ निश्चित रूप से 'सत्' अथवा 'असत्' नहीं कहा जा सकता । सभी सन्देहास्पद है । केवल निःसंदिग्ध है, सर्वव्यापिनी चेतना । मानवी बुद्धि नितान्त असमर्थ है । डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के अनुसार ' खण्डन खण्डखाद्य' अद्वैत दर्शन का महान् ग्रन्थ है | I ( २ ) नैषधीयचरित 'नैषधीयचरित' श्रीहर्ष की सर्वाधिक चर्चित और विख्यात कृति ही नहीं संस्कृत और भारतीय साहित्य का एक गौरवग्रन्थ है । उनका यह 'मधुवर्षि काव्य' है जो स्वयम् उनके ही अनुसार चिन्तामणि- मन्त्र - सामर्थ्य से रचा जा सका है - : तच्चिन्तामणिमन्त्र चिन्तनफले' ( नं० १।१४५ ) । यह काव्य बाईस सर्गों में विभक्त है, जिनमें प्रायः शताधिक श्लोक हैं, सत्रहवें सगं में तो दो सो
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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