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________________ ६६ महाकाव्यम् शिखर पर ही ढंगा है । वह ( राजप्रासाद ) सफेदी किये जाने के कारण अत्यन्त उज्ज्वल भी है । शिव नीलकंठ, कर्पूरगौर और चंद्रमौलि हैं । ये तीनों विशेषताएँ राजप्रासाद में भी उपर्युक्त प्रणाली से स्पष्ट हैं, अतः उसकी तुलना नीलकण्ठ, सुधोज्ज्वल, चंद्रमौलि शिव से की गयी । समस्त गुण होने के कारण यह शिवत्व, यह उन्नतभाव प्राप्त करना उचित ही है । मल्लिनाथ के अनुसार श्लिष्ट विशेषण- विशेष्यों का प्रकृतार्थ मात्र नियंत्रण होने से प्रकृत शिवप्रतीति के कारण यहाँ ध्वनि है, विद्याधर ने यहाँ श्लेषालंकार का निर्देश किया है, चंद्रकलाकार असंबंध में संबंध कथन होने के कारण अतिशयोक्ति मानते हैं । बहुरूपकशालभञ्जिका मुखचन्द्रे पु कलङ्करङ्कवः । यदनेककसौधकन्धराहरिभिः कुक्षिगतीकृता इव ॥ ८३ ॥ जीवति । बहुरूपकाः भूयिष्ठसौन्दर्याः, शैषिकः कप्रत्ययः । तेषु शालभञ्जिकानां कृत्रिमपुत्रिकाणां मुखचन्द्रेषु कलङ्करङ्कवः चन्द्रत्वात् सम्भा विता : कलङ्कमृगाः ते यस्यां नगर्यामनेकेषां बहूनां सौधानो कन्धरासु कण्ठप्रदेशेषु ये हरयः सिंहाः तैः कुक्षिगतीकृता इव ग्रस्ताः किमित्युत्प्रेक्षा मुखचन्द्राणां निष्कलङ्कत्वनिमित्तात्, अन्यथा कथं चन्द्रे निष्कलङ्कतेति भावः ॥ ८३ ॥ अन्वयः--बहुरूपकशालभञ्जिका मुखचन्द्रेषु कलङ्करङ्कवः यदनेककसौधकन्धराहरिभिः कुक्षिगतीकृताः इव ( दृश्यन्ते ) । हिन्दी - - अत्यन्त सुन्दर आकार वाली पुतलियों के मुखचंद्रों पर स्थित लांछन मृग जिस नगरी के बहुसंख्यक प्रासादों की कंधराओं ( मध्य स्थानों ) में बने ( कृत्रिम ) सिंहों द्वारा मानों कुक्षिगत कर लिये ( खा डाले ) गये दीखते हैं । टिप्पणी-- कुंडिनपुरी के अनेक प्रासादों में स्तम्भादि पर शालभंजिकाए (पुतलियाँ) बनायी गयी हैं, उनके मुख अत्यन्त सुन्दर हैं, मृगचिह नहीन चंद्र के ममान । जब मुख चंद्र हैं, तव स्वाभाविकतया उन पर कलङ्कचिहन मृग भी रहना उचित है, पर वैसा नहीं है । इसका कारण यह संभावित है कि प्रासादों की कंधराओं में बने ( कृत्रिम ) सिंह उन्हें खा गये । मल्लिनाथ
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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