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________________ ( २३ ) आश्रित थे और उनका कार्य-क्षेत्र कान्यकुब्जप्रदेश ही था। (ए क्रिटिकल स्टडी आफ नैषधीयचरितम्, पृ० १०९ )। __ श्रीहर्ष का व्यक्तित्व _ 'नैषधीयचरित' के आधार पर उसके रचयिता महाकवि श्रीहर्ष का व्यक्तित्व स्पष्ट होने में कोई बाधा नहीं है। श्रीहर्ष उच्चकोटि के विद्वान् कवि, दार्शनिक, नैयायिक और तार्किक थे । 'चिन्तामणि'-मन्त्र के वे साधक ही माने जाते हैं। वे परम आस्तिक थे, शास्त्रमर्यादा को माननेवाले देवभक्त । विष्णु, शिव, सरस्वती के तो उपासक ही थे, यों देवता और देवी प्रसाद पर पर उन्हें परम आस्था थी। पूर्वजन्म के पुण्यकृत्यों से संजात प्रारब्ध और कर्मवाद के वे विश्वासी थे, किन्तु देव की इच्छा को भी परम सत्य के रूप में उन्होंने माना है। व्यक्ति के भालफलक पर लिखा ईश्वर-लेख शुभ हो या अशुभ, वह होगा ही-'अस्येश्वरेण यदलेखि ललाटपट्टे तत्स्यादयोग्यमपि योग्यमपास्य तस्य ।' (ले० १३।४९ या ५० )। विधाता की इच्छा जैसी होती है, उसी के अनुसार मानव-चित्त का व्यवहार बन जाता है। वात्या का अनुगमन जैसे विवश तृण करता ही है, वैसी ही उसकी स्थिति है'अवश्यभव्येष्वनवग्रहग्रहा यया दिशा धावति वेधसः स्पृहा । तृणेन वात्येव तयानुगम्यते जनस्य चित्तेन भूशावशात्मना।' (ने० १।१२० ) । नीति भी भाग्यबल से ही सफल हो पाती है-'भाग्यरिव नीतिः' (नै० १५।५४ )। देवेच्छा का प्रतिकार सुरेश्वर भी नहीं कर सकता—'न वस्तु दैवस्वरसाद्विनश्वरं सुरेश्वरोऽपि प्रतिकर्तुमीश्वरः । ( ९।१२६ )। भारत और भारती वाणी के प्रति उन्हें अगाध श्रद्धा थी। उनके अनुसार आर्यों में धुरिप्रतिष्ठित मनु आदि ने उसी प्रकार इलावृतादि वर्षों में भारत को स्तुतियोग्य माना है, जैसे समस्त आश्रमों में गृहस्थाश्रम को–'वर्णेषु यद् भारतमार्यधुर्याः स्तुवन्ति गार्हस्थ्यमिवाश्रमेषु ।' ( ० ६।९७ )। अर्थात जैसे गृहस्थाश्रम ही सब आश्रमों का आधार है, वैसे ही भारत शेष इलावृत्तादि खंडों का। भारत स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि स्वर्ग में केवल 'कल्याण' है, क्योंकि वह केवल 'भोगभूमि' है, उसमें धर्म ( पुण्य ) नहीं है, वह तो केवल
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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