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________________ ( २२ ) नारायण के अनुसार यह कवि के 'स्वदेश' अर्थात् बंगाल की रीति है। यों डा० सुशीलकुमार ने इसे अमान्य ठहराया है। उनके अनुसार 'उलूलु' ध्वनि अन्य प्रदेशों में भी मंगलोत्सव-अवसर पर अन्य कवियों द्वारा वर्णित है। गुजराती कवि वस्तुपाल और काश्मीरी कवि मुरारि ने भी 'उलूलु' ध्वनि का वर्णन किया है। इसी प्रकार विवाह-अवसर पर दमयन्ती का अन्य आभूषणों के साथ बंगाली रीति के आभूषण 'शंखवलय' का धारण करना ( विरेजतुर्माङ्गलिकेन सङ्गता भुजो मुदत्या वलयेन कम्बुनः । -१५॥४५ ) वर-वधू के कुशबद्धकर (निबद्धौ किमु कर्कशः कुशः -१६।१४), अलपना (१५।१२), वर को दर्पण दिखाना (सेवाचणदर्पणाम्-१५७०) और वर का किरीट लगाना ( स जन्ययात्रामुदितः किरीटवान्–१५७२), मत्स्यमांसादि भोजन ( अराघि यन्मीनमृगाजपत्रिजः पलमृदु स्वादु सुगन्धितेमनम्१६३८७ )-आदि परंपराओं के वर्णन के आधार पर श्रीहर्ष को बंगाली माना गया है, यद्यपि इनमें से अनेक रीति रिवाज केवल बंगाल के ही नहीं हैं। नैषध के १५।४५ की टीका में भले ही नारायणपण्डित ने शंख-वलयधारण को गोडदेशाचार लिखा है-'गौडदेशे विवाहकाले शङ्खवलयधारणमाचारः', किन्तु डा० दे० ने 'महाभारत' (विराटपर्व) में ऐसा ही उदाहरण दिखाकर इस परंपरा को केवल बंगाल की ही कहना अमान्य ठहरा दिया है। डा० नीलकमल भट्टाचार्य "चिंतामणि' मंत्र-साधना के आधार पर श्री हर्ष को बंगाली ठहराते हैं, क्योंकि बंगाल को तन्त्र का उद्भव माना जाता है, पर यह भी कोई पुष्ट आधार नहीं है, क्योंकि बारहवीं शती में समग्र भारत देश में तन्त्र का प्रचार-प्रसार था। __ वस्तुतः ऐसा लगता है कि श्रीहर्ष के वंश का संबंध बंगाल से अवश्य था, क्योंकि उनके पौत्र कमलाकर गुप्त और उनके वंशज हरिहर को गोडदेशीय माना जाता है, इसके साथ ही यह भी प्रमाणित है कि श्रीहर्ष के जीवन का अधिकांश कन्नौज-काशी ही में व्यतीत हुआ। डा. ए. एन. जानी का समन्वयात्मक निर्णय इस विषय में उचित प्रतीत होता है कि रक्तसंबंध से श्रीहर्ष बंगाली थे, किंतु उनके पिता श्रीहीर और श्रीहर्ष कन्नौज-नरेश के
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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