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________________ द्वितीयः सर्गः टिप्पणी-दमयन्ती के उदर-सौन्दर्य का वर्णन । अंगुष्ठ-निवेश का कारण पृष्ठमध्य में निम्नत्व है और चार अंगुलियों द्वारा धारण करने के कारण तीन रेखाएँ ( त्रिवली ) बन गयी हैं। मल्लिनाथ के अनुसार उत्प्रेक्षा, विद्याधर के अनुसार काव्यलिंग और रूपक अलंकार ॥ ३४ ।। उदरं परिमाति मुष्टिना कुतुकी कोऽपि दमस्वसुः किमु ? । धृततच्चतुरङ गुलीव यद्वलिभिर्भाति सहेमकाञ्चिभिः ॥ ३५ ॥ जीवातु-उदरमिति । कोऽपि कुतुकी दमस्वसुरुदरं मुष्टिना परिमाति किम् ? परिच्छिनत्ति किमित्युत्प्रेक्षा, कुतः ? यद् यस्मात् सहेमकाञ्चिभिवलिभिहेमकाञ्चया सह चतसृभिस्त्रिवलिभिरित्यर्थः । एतस्याः कनकसावयं सूचितम् घृतं तस्य मातुश्चतुरङ्गुली अङ्गुलीचतुष्टयं येन तदिव भातीत्युत्प्रेक्षा । अत्रोत्प्रेक्षयोर्हेतुहेतुमद्भूतयोरङ्गाङ्गिभावेन सजातीयः सङ्करः। पूर्वश्लोके वलीनां तिसृणां चतुरङ्गुलिमध्यनिर्गतत्वमुत्प्रेक्षितम् । इह तु तासामेव काञ्चीसहितानां चतुरङ्गुलित्वमुत्प्रेक्षत इति भेदः प्रेक्षितरिति भावः ॥ ३५ ॥ अन्वयः-कः अपि कुतुको मुष्टिना दमस्वसुः उदरं परिमाति किमु यत् सहेमकाञ्चिभिः वलिभिः घृततच्चतुरङ्गुलि इव माति ? हिन्दी-क्या कोई कौतुको मुठ्ठी से दमयन्ती का उदर नापना चाहता है कि स्वर्ण मेखला सहित त्रिवलियों के कारण वह नापनेवाले की चार अंगुलियों से युक्त जैसा सुशोभित हो रहा है ? टिप्पणी-दमयन्ती ने स्वर्णमेखला पहिन रखी है, एक वह और तीन त्रिवली-सब मिलकर ऐसा लग रहा है कि किसी ने नापने के लिए चार अंगुलियों में दमयन्ती का उदर पकड़ रखा है। मल्लिनाथ के अनुसार दो उत्प्रेक्षाओं का सजातीय संकर, विद्याधर के मत में उत्प्रेक्षा और उपमा ॥३५।। पृथुवतुलतान्नितम्बकृन्मिहिरस्यन्दनशिल्पशिक्षया । विधिरेककचक्रचारिणं किमु निर्मित्सति मान्मथं रथम् ॥ ३६ ॥
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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