SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नषधमहाकाव्यम् टिप्पणी-दमयन्ती की केशराशि मयूरपिच्छ से अधिक घनी, लहरदार और शोभाशालिनी है और कुचयुग्म के सम्मुख गजराज ऐरावत की कुम्मस्थली भी निम्न है। ऐसा प्रतीत होता है कि मयूर ने इसी से षडानन ( अतएव अधिक केशराशि वाले ) की शरण ली है और ऐरावत देवराज को सेवा करके प्रसन्न करना चाहता है कि मयूर-ऐरावत दमयन्ती की केशराशि और कुचयुग्म की समानता करने योग्य केश-कुम्मस्थल पा सके। मल्लिनाथ की दृष्टि में काव्यलिंग और अतिशयोक्ति, जिनका चंद्र कलाकार संकर मानते हैं । विद्याधर के अनुसार यहाँ उत्प्रेक्षा और दीपक अलंकार हैं ॥ ३३ ॥ उदरं नतमध्यपृष्ठतास्फुरदगुष्ठपदेन मुष्टिना। चतुरङ्गुलिमध्यनिर्गतत्रिवलिभ्राजि कृतं दमस्वसुः ।। ३४ ॥ जीवातु-उदरमिति । दमस्वसुरुदरं नतमध्यं निम्नमध्यप्रदेशं पृष्ठं यस्योदरस्य तस्य भावस्तत्ता तया स्फुरत् दृढफलके पृष्टफलके स्फुटीभवदगुष्ठपदमङ्गुष्ठन्यासस्थानं यस्य तेन मुष्टिना करणेन चतसृणामगुलीनां समाहारश्चतुरङ्गुलि 'तद्धिते'त्यादिना समाहारे द्विगुरेकवचननपुसकत्वे । तस्य मध्येभ्योऽन्तरालेभ्यो निर्गतं तत्रिवलि पूर्ववत् समासादिः कार्यः, यत्तूक्तं वामनेन 'त्रिवलिशब्दः संज्ञा चेदिति सूत्रेण सप्तर्षय इत्यादिवत् 'दिक्संख्ये संज्ञायामि'ति संज्ञायां द्विगुरिति । तदपि चेत्करणसामर्थ्यात् त्रिवलय इति बहुवचनप्रयोगदर्शने स्थितं गतिमात्रं न सार्वत्रिकमितिप्रतीमः । तेन भ्राजत इति तद्बाजि वलित्रयशोभि कृतमित्युत्प्रेक्षा, कौतुकिनेति शेषः । मुष्टिग्राह्यमध्येयमित्यर्थः । मुष्टिग्रहणादगुष्ठनोदनात्पृष्ठमध्ये नम्रता उदरे च चतुरगुलिनोदनाद्वलित्रयाविर्भावश्चेत्युत्प्रेक्षते ।। ३४ ॥ अन्वयः--दमस्वसुः उदरं नतमव्यपृष्ठशास्फुरदगुष्ठपदेन मुष्टिना चतुरङ्गुलमध्यनिर्गतत्रिवलिभाजि कृतम् । हिन्दी-दमयन्ती का उदर पीठ का मध्यभाग नत होने के कारण जिसका अगुष्ठ-स्थान प्रकट हो रहा है, उस मुठ्ठी से चार अंगुलियों के बीच से निकली त्रिवली ( तीन रेखाओं ) से सुशोभित बनाया गया है।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy