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________________ १२२ नैषधमहाकाव्यम् साथी के मुक्त होने पर प्रमोद से भर उठी। विद्याधर के अनुसार इस श्लोक में अनुप्रास-अपह नुति-जाति की संसृष्टि है। 'नैषधीयचरित' के प्रत्येक कथा के समाप्ति श्लोक में 'आनन्द' शब्द आता है, जैसे इस श्लोक का आरम्भ ही "आनन्द' शब्द से है, ऐसे ही प्रत्येक सर्गान्त श्लोक में कहीं न कहीं आयेगा, इसलिए इस महाकाव्य को 'आनन्दाङ्क' कहा जाता है। वसंततिलका वृत्त, जिसका का लक्षण है---तगण ( 51 ), भगण ( 1 ), दो जगण ( 11 ) और अंत के दो ( 5 ) गुरु अक्षर,--१४ अक्षरों का एक चरण ॥१४४।। श्रीहर्ष कविराजराजिमुकूटालङ्कारहीरः सुतं श्रीहौरः सुषवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् । तच्चिन्तामणिमन्यचिन्तनफले शृङ्गारभङ्गया महाः काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते सर्गोऽयमादिर्गतः ॥ १५ ॥ जीवातु-अथ कविः काव्यवर्णनमाख्यातपूर्वकं सर्गसमाप्ति श्लोकबन्धेनाहश्रीहर्षमिति । कविराजराजिमुकुटानां विद्वच्छे ठश्रेणीमुकुटानाम् अलङ्कारभूतो हीरो वज्रमणिः हीरो नाम विद्वान् श्रीहर्षनामानं यं सुतं सुषुवे जनयामास, मामल्लदेवी नाम स्वमाता सा च यं सुतं सुषवे, तस्य श्रीहर्षस्य यश्चिन्तामणिमन्त्रः तस्य चिन्तनमुपासना तस्य फले फलभूते शृङ्गारभङ्गया शृङ्गाररसेन चारुणि निषधानां राजा नैषधो नल: तदीयचरिते नलचरितनामके महाकाव्ये अयमादिः प्रथमः सर्गो गतः समाप्त इत्यर्थः । एवमुत्तरत्रापि द्रष्टव्यम् ॥१४५।। इति 'मल्लिनाथसूरि विरचितायां 'जीवातु'समाख्यायां नैषधटीकायां प्रथमः सर्गः समाप्तः ॥१॥ अन्वयः-कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः श्रीहीरः मामल्लदेवी च जितेन्द्रियचयं यं श्रीहर्ष सुतं सुषुवे, तच्चिन्तामणिमन्त्रचिन्तनफले शृङ्गारभङग्या चारुणि नैषधीयचरिते महाकाव्ये अयम् आदिः सर्गः गतः ।। हिन्दी-कविराज समूह के मुकुट के अलंकार 'हीरक' के तुल्य श्रीहीर (पिता) और मामल्लदेवी ( माता ) ने जिस इंद्रयिविजयी श्रीहर्ष पुत्र को जन्म दिया, उस श्रीहर्ष को चिंतामणिमंत्र के अनुध्यान जपादि के फलरूप शृङ्गार की भंगिमामय उक्तियों से चारु बने नैषधीय चरित्र महाकाव्य का यह आदि सर्ग पूर्ण हुआ।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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