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________________ नैषधमहाकाव्यम् दशा को विकसित होते करुण वृक्षों से युक्त वन में करुणा से परिप्लावित हो सुनते पुष्प रूप कर फैलाये स्थलकमलिनो को अनिच्छापूर्वक देखा। टिप्पणी-वन में कोकिल-कूजन था, भ्रमर-गुंजार था, स्थल-पद्मिनी थी, जिस पर कमल खिले हुए थे। इन सब को देखकर वियोगी जन कष्ट पाते हैं । राजा की श्रवण में अनास्था का कारण है गानो स्थल-पद्मिनी का कमल कर फैला कर निषेध कि क्या किसी की करुणकथा--दुर्दशा की गाथा सुनते हो? यह निवारण कूजन, गुंजार, खिले कमल--- सब की अनित्यता का सूचक है, इसके प्रति अनास्था ही उचित है । करुणा ही उचित है। मल्लिनाथ के अनुसार रूपकानुप्राणिता गम्योत्प्रेक्षा और विद्याधर के अनुसार समासोक्ति, रूपक और प्रतीयमानोत्प्रेक्षा, जिसे चंद्रकलाकार ने सब का अंगांगिभाव संकर कहा है। रसालसालः समदृश्यतामुना स्फुरद्विरेफारवरोषहुकृतिः। समोरलोलेर्मकुलवियोगिने जनाय दित्सन्निव तजनाभियम् ॥ ८९ ॥ जोवातु-रसालेति । अमुना नलेन स्फुरन्तो द्विरेफास्तेषामारवो भ्रमरझङ्कार एव रोषेण या हुकृतिहुङ्कारो यस्य सः समीरलोलायुचलेर्मुकुलरगुलिभिरिति भावः । वियोगिने जनाय तर्जनामियं दित्सन् दातुमिच्छन्निव स्थितः, ददातेः सन् प्रत्ययः 'सनिमीमे'त्यादिना इसादेशः, 'अत्र लोपोऽभ्यासस्ये'त्यभ्यासलोपः, 'सस्यार्धधातुक' इति सकारस्य तकारः । रसालसालश्चूतवृक्षः समदृश्यत सम्यग्दृष्टः । द्विरेफेत्यादिरूपकोत्थापितेयं तर्जनाभयजननोत्प्रेक्षेति सङ्करः॥ ८९ ॥ ___ अन्वयः-अमुना स्फुरद्विरेफारवरोषहुकृतिः समीरलोलैः मुकुल। वियोगिने जनाय तजनाभियं दित्सन् इव रसालसालः समदृश्यत । हिन्दी-उस ( राजा नल ) ने भनभनाते भ्रमरों के गुंजाररूप क्रोध की हु कारी से युक्त. समीरण में डोलते बौर द्वारा वियोगियों को डाँटने-धमकानेडराने की इच्छा करते जैसे आम्रवृक्ष को देखा। टिप्पणी--वियोगियों के संताप देने वाले उद्दीपन बौराते आम का वर्णन मल्लिनाथ के अनुसार रूपक-उत्प्रेक्षा का संकर, विद्याधर के अनुसार अनुप्रासउत्प्रेक्षा।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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