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________________ पंचास्तिकाय क्या है? क्या अज्ञानके साथ उसका समवाय है? या एकत्व? समवाय तो हो नहीं सकता, क्योंकि अज्ञानीका अज्ञानके साथ समवाय मानना निष्फल है, अतः अगत्या 'आत्मा अज्ञानी है" ऐसा कथन अज्ञानके साथ उसका एकत्व सिद्ध कर देता है और इस प्रकार अज्ञानके साथ एकत्व सिद्ध होनेपर ज्ञानके साथ भी उसका एकत्व अवश्य सिद्ध हो जाता है।।४९।। द्रव्य और गुणोंमें अयुतसिद्धिका वर्णन समवत्ती समवाओ, अपुधब्भूदो य अजुदसिद्धो य। तम्हा दव्वगुणाणं, अजुदा सिद्धित्ति णिहिट्ठा।।५०।। गुण और गुणीके बीच अनादि कालसे जो समवर्तित्व- तादात्म्य संबंध पाया जाता है वही जैनमतमें समवाय कहलाता है। चूँकि समवाय ही अपृथग्भूतत्व और अयुतसिद्धत्व कहलाता है इसलिए द्रव्य और गुण अथवा गुण और गुणीमें अयुतसिद्धि होती है। उनमें पृथक् प्रदेशत्व नहीं होता। ऐसा श्री जिनेंद्रदेवने निर्देश किया है। दृष्टांतद्वारा ज्ञान-दर्शनगुण और जीवमें अभेद तथा भेदका कथन वण्णरसगंधफासा, परमाणुपरूविदा विसेसा हि। दव्वादो य अणण्णा, अण्णत्तपगासगा होति ।।५१।। दंसणणाणाणि तहा, जीवणिबद्धाणि णण्णभूदाणि। ववदेसदो पुधत्तं, कुव्वंति हि णो सभावादो।।५२।। जिसप्रकार परमाणु में कहे गये वर्ण रस गंध स्पर्शरूप विशेष गुण परमाणुरूप पुद्गलद्रव्यसे अभिन्न और भिन्न दोनों रूप हैं - निश्चयकी अपेक्षा प्रदेशभेद न होनेसे एक हैं और व्यवहारकी अपेक्षा संज्ञा, संख्या, लक्षण आदिमें भेद होनेसे अनेक हैं - पृथक् हैं उसीप्रकार जीवके साथ समवाय संबंधसे निबद्ध होकर रहनेवाले ज्ञान और दर्शन अभिन्न और भिन्न दोनों रूप हैं। निश्चयकी अपेक्षा प्रदेशभेद न होनेसे एक हैं और व्यवहारकी अपेक्षा संज्ञा, संख्या, लक्षण आदिमें भेद होनेसे अनेक हैं -- पृथक् हैं। ।५१५२।। जीवकी अनादि-निधनता तथा सादि-सांतता आदिका कथन जीवा अणाइणिहणा, संता णंता' य जीव भावादो। सब्भावदो अणंता, पंचग्गगुणप्पधाणा य।।५३।। १. साद्यनन्ताः। २. जीवभावतः क्षायिको भावस्तस्मात्। ३. अनन्ता विनाशरहिता: अथवा द्रव्यस्वभावगणनया पुनरनत्ताः। सान्तानन्तशब्दयोर्द्वितीयव्याख्यानं क्रियते -- सहान्तेन संसारविनाशेन वर्तन्ते सान्ता भव्याः, न विद्यन्तेऽन्तः संसार विनाशो येषां ते पुनरनन्ता अभव्याः, ते चाभव्या अनन्तसंख्यास्तेभ्योऽपि भव्या अनन्तगुणसंख्यास्तेभ्योऽप्यभव्यसमानभव्या अनन्तगुणा इति।। -- ज. वृ.
SR No.009558
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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