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________________ V दूसरी बार पुन. उसका रूपान्तरण करने लगे, जिसमे अनेको नये शब्दों तथा विषयो की वृद्धि के साथ-साथ सम्पादन - विधिमे भी परिवर्तन किया । जैनेन्द्र प्रमाण कोषका यह द्वितीय रूपान्तरण ही आज 'जेनेन्द्र सिद्धान्त कोष' के नाम से प्रसिद्ध है । इसलिए 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष' के नामसे प्रकाशित जो अत्यन्त परिष्कृत कृति आज हमारे हाथोमे विद्यमान है, वह इसका प्रथम रूप नही है । इससे पहले भी यह किसी न किसी रूपमे पाँच बार लिखी जा कुकी है। इसका यह अन्तिम रूप छठी बार लिखा गया है । इसका प्रथमरूप ४-५ रजिस्ट्रो मे जो सन्दर्भ - सग्रह किया गया था, वह था । द्वितीय रूप सदर्भ - सग्रहके खुले परचोका विशाल ढेर था । तृतीय रूप 'जैनेन्द्र प्रमाण कोष' नाम वाले वे आठ मोटेमाटे खण्ड थे जो कि इन परचोको व्यवस्थित करनेके लिए लिखे गये थे । इसका चौथा रूप वह रूपान्तरण था जिसका काम बीचमे ही स्थगित कर दिया गया था । इसका पाँचवीं रूप वे कई हज़ार स्लिप थी जो कि जैनेन्द्र प्रमाण कोष तथा इस रूपान्तरणके आधारपर वर्णी जी ने ६-७ महीने लगाकर तैयार की थी तथा जिनके आधारपर कि अन्तिम रूपान्तरण की लिपि तैयार करनी इष्ट थी । इसका छठा रूप यह है जो कि 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष' के नामसे आज हमारे सामने विद्यमान है । यह एक आश्चर्य है कि इतनी रुग्ण कायाको लेकर भी वर्णी जीने कोष के सकलन सम्पादन तथा लेखनका यह सारा कार्यं अकेले सम्पन्न किया है । सन् १९६४ मे अन्तिम लिपि लिखते समय अवश्य आपको अपनी शिष्या ब्र० कुमारी कौशल का कुछ सहयोग प्राप्त हुआ था, अन्यथा सन् १९४९ सन् १९६५ तक १७ वर्षके लम्बे कालमे आपको तृण मात्र भी सहायता इस सन्दर्भ मे कही से
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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