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________________ vi प्राप्त नही हुई। यहाँ तक कि कागज़ जुटाना, उसे काटना तथा जिल्द बनाना आदि का काम भी आपने अपने हाथ से ही किया। यह केवल उनके हृदयमे स्थित सरस्वती माता की भक्तिका प्रताप है कि एक असम्भव कार्य भी सहज सम्भव हो गया और एक ऐसे व्यक्तिके हाथसे सम्भव हो गया जिसकी क्षीण कायाको देखकर कोई यह विश्वास नहीं कर सकता कि इसके द्वारा कभी ऐसा अनहोना कार्य सम्पन्न हुआ होगा। भक्ति मे महान् शक्ति है, उसके द्वारा पहाड़ भी तोडे जा सकते हैं। यही कारण है कि वर्णी जी अपने इतने महान् कार्यका कर्तृत्व सदा माता सरस्वतीके चरणोमे समर्पित करते आये हैं, और कोष को सदा उसी की कृति कहते आये है । यह भक्ति तथा कृतज्ञताका आदर्श है। यह कोष साधारण शब्द-कोश जैसा कुछ न होकर अपनी जातिका स्वय है। शब्दार्थ के अतिरिक्त शीर्षको उपशीर्षको तथा अवान्तर शीषको मे विभक्त उसकी वे समस्त सूचनायें इसमे निबद्ध हैं जिनकी कि किसी भी प्रवक्ता लेखक अथवा संधाता को आवश्यकता पड़ती है। शब्द का अर्थ, उसके भेद प्रभेद, कार्य-कारणभाव, हेयोपादेयता, निश्चय व्यवहारनय तथा उसकी मुख्यता गौणता, शका समाधान, समन्वय आदि कोई ऐसा विकल्प नही जो कि इसमे सहज उपलब्ध न हो सके । विशेषता यह कि इसमे रचयिताने अपनी ओर से एक शब्द भी न लिखकर प्रत्येक विकल्प के अन्तर्गत अनेक शास्त्रोंसे सकलित आचार्योंके मूल वाक्य निबद्ध, किए हैं। इसलिए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं कि जिसके हाथमे यह महान् कृति है उसके हाथमे सकल जैन-वाड्मय है। सुरेशकुमार जैन गार्गीय
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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