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________________ २४ पदार्थ विज्ञान विनाश होता है। इसी प्रकार मूल चेतन पदार्थ या जीव सत् है क्योकि वह न कभी उत्पन्न होता है और न कभी उसका विनाश होता है । उत्पन्न व विनाश तो इस शरीरका होता है अन्दरवाले जीवात्माका नही । इसी प्रकार आकाश सत् है क्योकि न वह कभी बनाया गया है और न कभी इसका विनाश होता है। इसपर-से जानना कि सत् वह है जो कभी भी किसीके द्वारा न बनाया गया हो, न उसका बनाया जाना सम्भव हो। वह सदासे स्वय होता है और सदा स्वय रहता है । उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यके कारण वह बराबर अनेको पर्याय या अवस्थाएँ बदला करता है, पर स्वय ज्यो का त्यो रहता है, जैसे कि मेज, कुरसी आदिक बडे या छोटे रूप धारण कर लेने पर भी परमाणु ज्यो का त्यो रहता है । अवस्थाएँ ही उत्पन्न हो-होकर विनष्ट हुआ करती हैं, सत् नही । सत् त्रिकालस्थायी होता है। वह अखण्डित होता है, तोडा नही जा सकता। जोडे-तोड़े जानेवाले जितने भी भौतिक पदार्थ दिखाई देते है वे सत् नही हैं। वे अनेक सद्भुत परमाणुओके समूह है। क्योकि अनेक पदार्थोंके समूह है इसलिए तोडे व जोड़े जा सकते हैं। सत् पदार्थ छोटा भी हो सकता है बड़ा भी, परन्तु वह स्वय ही वैसा होता है। छोटेसे बडा व बडेसे छोटा बनाया नही जा सकता। परमाणु छोटा सत् है और आकाश बडा । इसलिए न परमाणुको तोडा जा सकता है न आकाशको। परमाणु व आकाश दोनो अखण्डित है, इसी प्रकार जीवात्मा भी अखण्डित है । तात्पर्य यह कि सत् स्वत सिद्ध तथा अखण्डित होता है । १४. स्वभाव चतुष्टय अब तक यह भली भांति समझा दिया गया कि पदार्थ गुणो तथा
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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