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________________ २ पदार्थ सामान्य २५ पर्यायोका समूह है और इसलिए वह नित्य तथा अनित्य दोनो रूपोमे देखा जा सकता है । पदार्थ या उसके गुणोको देखें तो वह नित्य प्रतीत होता है और उनकी पर्यायो या अवस्थाओको देखें तो वह अनित्य प्रतीत होता है । इस प्रकार पदार्थमे तीन बातें पढी जाती है - गुण, जिसमे गुण रहे वह द्रव्य, अ र पर्याय । और भी सूक्ष्म दृष्टिसे देखनेपर पदार्थमे चार बातें खोजी जा सकती हैं - द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव । इन चारोको पदार्थके स्व-चतुष्टय कहते है | 'स्व- द्रव्य' कहते है उस वस्तुको जिसमे गुण रहते है यह ठीक हे कि द्रव्य से भिन्न गुण कोई वस्तु नही, परन्तु क्योकि द्रव्य एक है और उसमे पाये जानेवाले गुण अनेक, आम एक है और उसमे पाये जानेवाले स्पर्श, रस, गन्ध व वर्ण आदि गुण अनेक, इसलिए ऐसा बोलनेमे आता है कि द्रव्यमे गुण रहते हैं । द्रव्य आश्रय है और गुण उसमे आश्रय पानेवाले । इस परसे यह नही समझना चाहिए कि द्रव्य नामकी एक थैली है जिसमे कि अनेक गुण भरे रहते है, जैसे कि बोरीमे अनाज या गिलासमे जल, क्योकि एकमेक पदार्थ मे भी 'इसमे यह गुण है ऐसा कहा जाता है' जैसे कि 'अग्निमे उष्णता है तथा प्रकाशत्व, दाहकत्व आदि अनेको गुण है' ऐसा नित्य कहनेमे आता है । 'इसमे यह है' इस प्रकारका वाक्य भिन्नभिन्न पदार्थोंके सम्बन्धमे भी बोला जाता है और एक अखण्ड पदार्थके सम्बन्धमे भी बोला जाता है । यहाँ ' द्रव्यमे गुण या पर्याय हैं' इस प्रकारका प्रयोग पृथक्-पृथक् पदार्थो के सम्बन्धमे न समझकर एकमेक पदार्थोके सम्बन्धमे ही समझना । परन्तु यहाँ तो यह प्रश्न होता है कि वह द्रव्य जिसमे गुण रहता है कुछ न कुछ लम्बाई, चौडाई, मोटाई या आकारविशेषवाला तो होना ही चाहिए, भले ही वह आकार छोटा हो कि बड़ा, क्योकि बिना आकारविशेषका निर्णय किये हम यह कैसे कह
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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