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________________ १० धर्म-अधर्म पदार्थ १ जीव पुद्गल सहायक, २. धर्म-अधर्म द्रव्यके आकार, ३. धर्म-अधर्म का कार्य, ४ लोकालोक विभाग, ५ धर्म द्रव्यकी सिद्धि,६ धर्म-अधर्म के स्वभाव-चतुष्टय । १. जीव पुदगल सहायक __ लोकमे जीव तथा पुद्गल ये दो ही पदार्थ हैं, जिनके द्वारा कि सृष्टि रची गयी है। इनके अतिरिक्त जो शेष चार पदार्थ हैं-वे केवल इन दोनोके उपकारी मात्र हैं। उनका अपना कोई स्वतन्त्र कार्य नही है। जिस प्रकार कि आकाश केवल दो मूल पदार्थोंको स्थान या अवकाश देकर इन दोनोका उपकार मात्र करता है अपना कोई स्वतन्त्र कार्य नहीं करता, इसी प्रकार शेष द्रव्यो सम्बन्धमे भी जानना। जीव तथा पुद्गल इन दोनो पदार्थोंमे दो प्रकार के कार्य होते हैं- एक भावात्मक और दूसरा क्रियात्मक । पदार्थके भीतर ही जो उसके अपने गुणोमे परिवर्तन होता है उसे भावात्मक कार्य या पर्याय कहते हैं, जैसे कि जीवमे रागसे द्वेष अथवा इस प्रकारके ज्ञानसे उस प्रकारका ज्ञान हो जाना और पुद्गलमे हरेसे पीला तथा खट्टेसे मीठा हो जाना । पदार्थके बाहर उसके स्थानमे अथवा उसके आकार में जो परिवर्तन होता है उसे क्रियात्मक कार्य या पर्याय कहते हैं। जीवके प्रदेशोमे सकोच विस्तार द्वारा उसके आकारमे परिवर्तन होना तथा उसका एक स्थानसे दूसरे स्थान पर गमन
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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