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________________ २३४ पदार्थ विज्ञान होना जीवका क्रियात्मक कार्य या पर्याय है। इसी प्रकार पुद्गल स्कन्धके प्रदेशोमे अनेक परमाणुओका एक दूसरेके भीतर समा जाना, अथवा उन परमाणुओंके भीतरसे बाहर निकलनेके कारण उसके आकारमे परिवर्तन होना, तथा परमाणुओ या स्कन्धोका एक स्थानसे दूसरे स्थानपर गमन करना, पुद्गलका क्रियात्मक कार्य या पर्याय है। भावात्मक तथा क्रियात्मक इन दोनो कार्यों या पर्यायोमे यह अन्तर है कि भावात्मक कार्य या पर्याय तो भीतर ही भीतर स्वयं होती रहा करती है, किसी दूसरेके देखनेमे नही आती, परन्तु क्रियात्मक कार्य या पर्यायमे हलन-चलन होती है जो बाहरमे देखनेमे आती है। भावात्मक कार्य या पर्यायका सम्बन्ध समय या कालकी अपेक्षा रखता है, क्योकि ज्यो-ज्यो काल बीतता रहता है भीतरके गुण भी परिवर्तन करते रहते हैं। इसी प्रकार उनके क्रियात्मक कार्य या पर्यायका सम्बन्ध अन्य तीन पदार्थोंकी अपेक्षा रखता है-आकाश तथा धर्म अधर्म नामवाले दो अन्य पदार्थ जिनका स्वरूप यहां दर्शाना इष्ट है । इस प्रकार जीव तथा पुद्गलके इन दोनो प्रकारके कार्योंमे सहायक होनेवाले चार पदार्थ हैं-आकाश, धर्म, अधर्म तथा काल । इनमे-से आकाशका कथन कर दिया गया, जिसका काम जीव तथा पुद्गलको रहनेके लिए स्थान देना तथा उनके प्रदेशोको एक दूसरेके भीतर अवकाश पानेमे सहायता देना है। अब यहां धर्म तथा अधर्मका कथन करेंगे, और काल द्रव्यका परिचय पीछे दिया जायेगा। २. धर्म-अधर्म द्रव्यके आकार धर्म या अधर्म ये दो शब्द यहां पुण्य तथा पापके अर्थमे प्रयोग
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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