SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ पदार्थ विज्ञान शक्तिका अधिकार नहीं है, इसलिए उन्हे अपना भार वहन करनेके लिए तथा अपनेको चलाते रखनेके लिए किसी शक्तिकी आवश्यकता नहीं है। कहां तक कहे इस व्योम-मण्डलकी विचित्रता। साधारण बुद्धिकी पहुँचसे वह बाहर है। केवल व्यापक दृष्टि ही उसे देख सकती है। व्योम-मण्डलकी विचित्रता तो उससे भी अधिक महान् है, जितनी कि आजका विज्ञान जानता है । साधारण बुद्धि जब इस रहस्यको न जान सकी तो उसे ईश्वर नामकी शक्तिका आश्रय लेकर अपने चित्तको सन्तुष्ट करना पड़ा। पृथिवी-चन्द्र आदि बड़ेबड़े पिण्डोको अधरमे थाम रखनेवाला ईश्वर ही है, ऐसी कल्पना जगतको करनी पड़ी। क्या ही अच्छा होता कि ईश्वर नामकी पृथक् शक्तिको स्वीकार करनेकी बजाय आकाशकी ही विचित्र शक्तिको स्वीकार कर लिया होता। इसका यह अर्थ नही कि मैं ईश्वरका निषेध कर रहा हूँ, बल्कि यह है कि ईश्वर तो अवश्य है, परन्तु व्योम-मण्डलकी इस विचित्र रचनामे उसका कुछ हाथ नही है। यह सब आकाश पदार्थको विचित्र जो अवगाहनत्व शक्ति है उसका चमत्कार है। अवगाहनत्व गुणके इस चमत्कारिक कार्यको देख-जानकर भी कौन यह कह सकता है कि आकाश कल्पना है। पदार्थोंको अपनेअपने स्थानपर टिकाये रखनेवाला, जो कुछ भी है वही तो आकाश नामसे कहा जा रहा है। वह अमूर्तिक तथा व्यापक होनेके कारण केवल पोल मात्र दिखाई देता है। वास्तवमे वह एक सत्ताभूत पदार्थ है, जो सदासे है और सदा रहेगा। न इसको किसीने बनाया है और न इसका कोई नाश ही कर सकता है।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy