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________________ ९ आकाश द्रव्य २२९ १३. अवगाहनत्व गुण खाली आकाशमे पदार्थका अपने-अपने स्थानमे टिककर रहने को अवगाह पाना कहते हैं । आकाशमे यह अवगाह जिस शक्तिके कारणसे पाया जाता है उसे आकाशका अवगाहनत्व गुण कहते हैं । अवगाहनका इतना ही अर्थ नही कि पृथक्-पृथक् पदार्थ अपने अपने पृथक्-पृथक् स्थानमे ठहरे रहे, बल्कि यह है कि पदार्थं जहाँ कही भी चाहे वहाँ ठहर जायें। इस प्रकार इस गुणकी विचित्रताके कारण एक पदार्थ दूसरे पदार्थ के भीतर प्रवेश भी पा सकता है, और प्रवेश पाकर उसके भीतर ठहर भी सकता है, जैसे कि संकोच हो जानेपर जीवके प्रदेश परस्पर एक दूसरेके भीतर प्रवेश पाकर ठहर जाते हैं, या दीपकका प्रकाश दूसरे दीपकके प्रकाशके भीतर प्रवेश पाकर ठहर जाता है । यद्यपि यह बात कुछ असम्भव-सी प्रतीत होती है कि एक पदार्थ दूसरेमे प्रवेश पाये परन्तु वास्तवमे यह होता अवश्य है । यदि ऐसा न हुआ होता तो लोकमे अधिकसे अधिक असख्यात ही परमाणु हुए होते, जिनके मिलनेसे एक सरसोके दाने जितना भी स्कन्घ बनने न पाता। इतनी बड़ी सृष्टि कहाँसे आती ? यदि सूक्ष्म से सूक्ष्म भी पुद्गल स्कन्धको तोडा जाये तो उसमे से इतने परमाणु निकल पड़ेंगे कि यदि उन्हे बिखेर दिया जाये तो अनन्त लोकोमे भी न समावें । आपकी आशंका इसलिए है कि आपकी दृष्टि स्थूल है । आप इन्द्रियोसे जो कुछ भी देखते है वह सब स्थूल है, मौर स्थूल होनेके कारण वे पदार्थं एक दूसरेमे नही समा सकते, बल्कि टकराकर पीछे हट जाते हैं, जैसे कि यह हाथ इस दूसरे हाथके साथ टकराकर पीछे हट जाता है, भीतर नही समा सकता । मैने पहले
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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