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________________ २२७ नीचे पृथ्वीपर गिरते दिखाई देते हैं, सो आकाशका दोष नही, और न ही बहुत अधिक दूर तक यह बात पाई जाती है । यह तो पृथ्वीको कोई आकर्षण शक्ति है । प्रत्येक पृथ्वी या चन्द्र-सूर्य आदिमे पृथक्पृथक् उन-उनकी शक्ति है । इस शक्तिका अधिकार अपनी-अपनी पृथ्वीके चारो तरफ कुछ सौ मील तक ही है उससे आगे नही । जहाँ तक यह शक्ति है वहाँ तक ही पदार्थ नीचेको ओर गिरते दिखाई देते हैं, परन्तु उससे आगे जहाँ उस शक्तिका अधिकार समाप्त हो जाता है और वह मन्द पडते - पडते समाप्त हो जाती है, वहाँ केवल शुद्ध आकाश (Space) होता है । उस आकाशमे जिस भी पदार्थको जहाँ भी रख दिया जाये वहाँ ही रखा रहेगा । इधरउधर न सरकेगा न गिरेगा । यदि पदार्थको चलाकर वहाँ छोड दिया जाये तो वह वहाँ सदा चलता ही रहेगा, जैसे कि पृथ्वी आदि । ९ आकाश द्रव्य आकाशमे पदार्थों को इस प्रकार चलते रहनेके लिए किसी शक्ति- विशेषका प्रयोग करना पडता हो सो भी नही है । विज्ञान द्वारा आकाशमे भेजे गये अनेको स्पुत्निक आज व्योम - मण्डलमे बराबर सचार कर रहे हैं। क्या आप समझते हैं कि उनमे कोई इजिन लगा है जो उन्हें घुमा रहा है । ऐसा भ्रम हो तो निकाल दीजिए । वे स्पुत्निक बिना किसी इजिन आदिके स्वयं घूम रहे हैं, और उसी दिशाको ओर घूम रहे है जिस दिशामे चलते हुए कि उन्हें छोडा गया है । उन्हें अपने इस चलनेमे किसी भी इजिन आदिको आवश्यकता नही पडती । साधारण वायुयान तो उस क्षेत्र घूमते हैं जहाँ तक कि पृथ्वीकी आकार्षण शक्तिका अधिकार है और इसलिए उन्हें अपना भार वहन करने तथा अपनेको चलानेके लिए शक्तिको आवश्यकता पड़ती है, परन्तु स्पुनिक शुद्ध आकाशमे पहुँच चुके हैं, किसी भी पृथ्वीको आकर्षण हु <'
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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