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________________ ८ पूद्गल पदार्य २०३ माताके बच्चे पैदा किये। पर तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि उसने जीव पदार्थ बनाया । कृत्रिम गर्भाशय बनाया जा सकता है पर जीव नही। ट्यूबवाले कृत्रिम गर्भाशयमे पनपनेवाला जीव वास्तवमे वही है जो कि रज-वीर्यके सूक्ष्म कीटाणुओमे पहलेसे मौजूद था। गर्भाशय भौतिक पदार्थ है, इसलिए वह बनाया जा सकता है, परन्तु जीव नही। अतः ‘पदार्थ-विज्ञान के विद्यार्थियोको ऐसे भ्रममे नही पड़ना चाहिए। १४ पुद्गलका स्वभाव-चतुष्टय पदार्थ-सामान्यमे बताया है कि प्रत्येक पदार्थका विशद परिचय प्राप्त करनेके लिए इसको चार दृष्टियोंसे देखना चाहिए-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । इसे ही वस्तुके स्वभाव-चतुष्टय कहते है। स्वभावको धारण करनेवाला जो कोई भी आकार-विशेषवाला प्रदेशवान् पदार्थ है उसे द्रव्य कहते हैं। द्रव्यके अन्तर्गत उसकी सख्या विचारी जाती है। उसके आकारको उसका क्षेत्र कहते हैं, उसके अवस्थानको उसका काल कहते है, तथा उसके गुण तथा धर्मको उसका भाव कहते है। वे चारो भी सामान्य तथा विशेष दोनो प्रकारसे देखे जाते हैं। सामान्य वह होता है जो सर्वत्र सर्वदा सभी विशेषो तथा रूपोमे समान रीतिसे पाया जाये, और विशेष कहते हैं उसके गुणो तथा पर्यायोको। 'स्वद्रव्य'की अपेक्षा विचार करनेपर सामान्य रूपसे पुद्गल द्रव्य एक मूर्तिक स्वभाव होनेके कारण एक है, परन्तु विशेष रूपसे उस स्वभावको धारण करनेवाले प्रदेशात्मक परमाणु अनन्तानन्त हैं। आकाशके प्रत्येक प्रदेशपर अर्थात् एक बालाग्र जितने स्थानमे भी वे अनन्तानन्त रहते हैं। प्रत्येक स्कन्धमे वे अनन्तानन्त रहते है।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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