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________________ २०४ पदार्थ विज्ञान __ 'स्व-क्षेत्र'की अपेक्षा विचार करनेपर सामान्यरूपसे परमाणु ही मूल द्रव्य होनेके कारण वह केवल एक प्रदेशी है, परन्तु विशेष रूपसे अनेक छोटे-बडे आकारोको धारण करनेवाले स्कन्ध अनेक प्रकारके हैं कुछ एक प्रदेशो हैं, कुछ अनन्त प्रदेशो है, कुछ संख्यात और कुछ असख्यात प्रदेशी हैं। अर्थात् कुछ तो इतने सूक्ष्म है कि आकाशके एक प्रदेशमे समा जाते है, और कुछ दो, तीन, सख्यात अथवा असख्यात प्रदेशोको घेरकर रहनेवाला हैं । परन्तु इसपर-से यह नहीं कहा जा सकता कि उसमे उतने ही परमाणु हैं जितने आकाश-प्रदेशोको घेरकर कि वह स्थित है। उतने भी हो सकते हैं और अधिक भी। हाँ, उतने प्रदेशोसे कम नही हो सकते। इस प्रकार दो प्रदेशी स्कन्धमे दो परमाणु भी हो सकते है और संख्यात, असख्यात व अनन्त भी। इसी प्रकार असख्यात प्रदेशीमे भी जानना। परन्तु यहाँ इतना विशेष है कि दो आदि सख्यात पर्यंत परमाणुओसे असख्यात प्रदेशी स्कन्ध नही बन सकता। कमसे कम असख्यात परमाणु तो होने ही चाहिए । अनन्त प्रदेशी अर्थात् लोकके अनन्त प्रदेशोको घेरनेवाला स्कन्ध सम्भव नही है क्योकि लोकमे अनन्त प्रदेश है ही नही। जैसा कि आगे आकाश द्रव्यमे बताया जायेगा सारा लोक असख्यात प्रदेशी मात्र है। थोडे प्रदेशोमे अधिक परमाणु कैसे समायें, इसका समाधान आगे किया जायेगा। स्वकालकी अपेक्षा विचार करनेपर सामान्य जो परमाणु वह तो नित्य है परन्तु उन परमाणुओसे मिलकर या बिछुडकर जो बडे या छोटे स्कन्ध बनते हैं और जो इस विश्वमे नित्य ही इन्द्रियोके विपय बन रहे हैं, वे अनित्य हैं, क्योकि वे उत्पन्न तथा विनष्ट होते रहते हैं। स्व-भावको अपेक्षा विचार करनेपर सामान्य रूपसे तो मूर्तिकपना अर्थात् इन्द्रियोसे जाना जाये ऐसा ही उसका एक
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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