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________________ ८ पुद्गल - पदार्थ १८७ वही मूल पदार्थ है, ये सब उसीके विकार हैं, उसीके अनेको रूप हैं । ये सर्व रूप विनाशीक है, अनित्य हैं, असत् हैं, क्योकि उत्पन्न हो-होकर विलीन हो जाते है । परन्तु जिस मूल तत्त्वमे से ये उदित होते हैं, जिसमे सब लीन होते है, वह परमाणु ही है । जिस प्रकार सभी जीवोमे मूल पदार्थं चेतन है, उसी प्रकार सभी पुद्गलोमे मूल पदार्थ परमाणु है। चेतनसे सव जोवोकी सृष्टि हुई है इसलिए 'चेतन' जैव- सृष्टिका ईश्वर है और परमाणुसे सर्व चित्र-विचित्र पुद्गलोकी सृष्टि हुई है इसलिए परमाणु पौद्गलिक या भौतिक सृष्टिका ईश्वर है | ६. परमाणुका लक्षण किसी भी पुद्गल पदार्थको बराबर कल्पना द्वारा तोडते चले जायें, अन्तमे एक ऐसा अविभागी पदार्थ शेष रह जाये जिसे आगे तोड़ा न जा सके । जिसकी न लम्बाई हो, न चोडाई और न मोटाई । जिसका आदि हो न मध्य, न अन्त। वह सूक्ष्म पदार्थ परमाणु कहलाता है । इसका अर्थ यह मत समझना कि परमाणु निराकर है । लोकका कोई भी पदार्थ निराकार नही, यह पहले ही बताया जा चुका है । क्योकि आकारवान् पदार्थ ही गुणोको धारण कर सकता है । गुणोको धारण करनेसे ही वह गुणोका समूह होता है, और गुणोका समूह होने से ही वह द्रव्य नाम पाता है । यहाँ यह बात न भूलना कि गुण तथा द्रव्य ऐसा जो भेद किया जाता है वह केवल काल्पनिक है, केवल समझाने तथा बतानेके लिए किया गया है । वास्तवमे गुण तथा द्रव्य पृथक् पृथक् पदार्थ नही बल्कि एकमेक है । गुण-समूह होनेके कारण परमाणुका भी कोई आकार है । उसका आकार क्या ? यह प्रश्न होनेपर इतना ही कहा जा सकता है कि वह परमाणु ही स्वय अपना आकार है । वह स्वयं जितना
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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