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________________ १८८ पदार्थ विज्ञान कुछ भी है वही उसकी लम्बाई है, वही उसको चौड़ाई है, वही उसकी मोटाई है, वही उसका आदि है, वही उसका मव्य है, वही उसका अन्त है। जैसे कि एक बारीक विन्दु आदि-मध्य-अन्तरहित, तथा लम्बाइ-चौडाई-मोटाईरहित होते हुए भी उसका कुछ न कुछ अपना आकार अवश्य होता है, उसी प्रकार परमाणुका समझना। हमारा यह परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म है। वैज्ञानिक लोग जिसे परमाणु कहते हैं वह वास्तवमें अनेक परमाणुओका पिण्ड है. स्थूल है, क्योकि अभी भी वह तोडा जा सकता है। परमाण तो वहां प्राप्त होता है जहाँ उसमे जाति-भेद न रह जाये। वैज्ञानिकोंके परमाणु तो अभी अनेको इलैक्ट्रोन हैं जो वरावर एक प्रोटोनके चारो तरफ घूम रहे हैं । इस सारे समूहका नाम वे एक परमाणु कहते हैं। ७. परमाणु मूर्तिक है परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होता है। यद्यपि पुद्गल पदार्थ इन्द्रियोसे जाने जाते हैं, परन्तु परमाणु इन्द्रियोंसे देखा-जाना नही जा सकता । किती यन्त्र द्वारा भी देखा नहीं जा सकता। इसपर प्रश्न होता है कि फिर तो उसे भी अमूर्तिक कहना चाहिए, सो ऐसा नही है। परमाणु मूर्तिक है। इन्द्रियोसे दिखाई देना यह मतिकका वास्तविक लक्षण नहीं है, यह तो स्थूल रूपसे समझानेके लिए कहा जाता है। हमारी इन्द्रियां तो स्थूल हैं, इनमे सामर्थ्य हो कितनी है। सूक्ष्म जन्तु विज्ञानमे यह बात बता दी गयी है कि जीवोके शरीर स्थूलसे सूक्ष्म, सूक्ष्मतर तथा सूक्ष्मतम होते हैं। स्थूल आंखोंसे दिखाई देते है, सूक्ष्म बहुत गौर करके देखनेपर दिखाई देते है, सूक्ष्मतर माइक्रोस्कोपकी सहायतासे दिखाई देते हैं और सूक्ष्मतम माइक्रोस्कोपकी सहायतासे भी दिखाई नही देते, जबतक कि वे वृद्धिको प्राप्त न हो जायं । ऐसा सूक्ष्मतम शरीर या काय ही जब इन्द्रियो द्वारा देखा नहीं जा सकता तो परमाणु कैसे देखा जा सकता है,
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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