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________________ = १८६ पदार्थ विज्ञान रखते । इनकी अपनी सत्ताका आधार भी वास्तवमे अलैक्ट्रोन और प्रोटोन ये दो पदार्थ हैं, जो इतने सूक्ष्म होते हैं कि उन्हे इन्द्रियोंसे किसी भी प्रकार जाना देखा नही जा सकता है । इनके होनाधिक सम्मिश्रण से ही ये चारो भूत तथा समस्त पदार्थ बनते हैं। सोने तथा लोहे कोई तात्त्विक अन्तर नही है । सोना भी अलेक्ट्रोन तथा प्रोटोनसे बना है और लोहा भी । सोने व लोहेमे भले जाति-भेद दिखाई दे, पर इनके मूल आधार जो अलेक्ट्रोन और प्रोटोन है उनमे कोई जातिभेद नही है । किसी पदार्थमे अलेक्ट्रोनोको मात्रा अधिक है और किसी मे प्रोटोनोकी । मिश्रणकी इस विभिन्नताके कारण ही पदार्थों की विभिन्नता है । इन दोनोसे ही पृथिवी तत्त्व बनता है और इन्ही से जल, अग्नि तथा वायु बनती है । अत. पृथिवी आदि चार मूलभूत पुद्गल पदार्थ भी अलैक्ट्रोन तथा प्रोट्रोन इन दोनोमे समा जाते है । अभी और सूक्ष्मतासे देखिए । वास्तवमे अलेक्ट्रोन तथा प्रोटोन भी कोई स्वतन्त्र पदार्थ नही हैं । इन दोनोके पीछे भी परमाणु नामका कोई मूल तत्त्न बैठा हुआ है, जिसे अभी तक विज्ञान नही खोज सका । परन्तु उनकी खोज जारी है, वह भी निकल आयेगा । मेरा तात्पर्य उस परमाणुसे नही है जो कि आजका विज्ञान बताता है । वह तो स्थूल है । स्वय अनेक परमाणुओका पिण्ड है । अतः जोडा तथा तोडा जा सकता है । यन्त्र विशेषोकी सहायतासे देखा तथा जाना जा सकता है । परन्तु जैन दर्शनका परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म है । वह स्वतन्त्र है । किसीसे मिलकर नही बना है । अखण्ड है, तोडा नही जा सकता, किसी यन्त्रकी सहायता से जाना तथा देखा भी नही जा सकता। फिर भी वह है अवश्य क्योकि उसके ये सर्व चित्र विचित्र कार्य देखने मे आते हैं । इस चित्र-विचित्र सृष्टिमे केवल परमाणु हो नृत्य कर रहा है ।
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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