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________________ ६ जीवके धर्म तथा गुण १५१ कहलाता है । अर्थात् इन्द्रियो द्वारा किसी पदार्थ या विषयको देखकर, या सुनकर, या चखकर, या सूँघकर, या छूकर, या विचार कर तत्सम्बन्धी किसी अन्य बातको जान जाना श्रुतज्ञान कहलाता है । यह कई प्रकारका होता है जैसे - हिताहि ज्ञान, अनुमान ज्ञान, श्रावण ज्ञान, तर्क ज्ञान, कल्पना ज्ञान, निमित्त ज्ञान इत्यादि । इनमे से हिताहित नामवाला प्रथम ज्ञान तो बडे-छोटे सभी प्राणियोको समान रूपसे होता है, परन्तु शेष ज्ञान केवल समनस्क या सज्ञी जीवो ही पाए जाते हैं । किसी भी पदार्थको किसी भी इन्द्रियसे मतिज्ञान द्वारा देख या जान लेनेके पश्चात् यह ज्ञान भी साथ-साथ हो जाया करता है कि 'यह पदार्थ मेरे कामका है अथवा कामका नही है', जैसे कि भोजन को देखकर 'यह तो मेरा भक्ष्य होनेके कारण मेरे कामका है', अथवा घासको देखकर 'यह मेरे कामका नही है', ऐसा ज्ञान मनुष्यको होता है | गन्ध द्वारा अन्नको जानकर 'यह मेरे कामका है' और स्पर्श द्वारा घनको जानकर 'यह मेरे कामका नही है' अथवा स्पर्श द्वारा अग्निको जानकर 'यह मेरे लिए अनिष्टकारी है, इससे बचना चाहिए' ऐसा ज्ञान चीटीको होता है । यही हिताहित सम्बन्धी श्रुतज्ञान है । इस ज्ञानके लिए मनकी आवश्यकता नही है । पूर्व संस्कारवश बिना किसी शिक्षाके यह स्वय हो जाया करता है । मतिज्ञान द्वारा जान लेनेके पश्चात् ही यह ज्ञान होता है । इन्द्रिय द्वारा पदार्थको जानना मतिज्ञान है और पीछे उसमे हिताहितका भाव होना श्रुतज्ञान है । किसी पदार्थको इन्द्रिय द्वारा प्रत्यक्ष करके अर्थात् देखकर, सुनकर, चखकर, सूँघकर या छूकर तत्सबन्धी किसी अप्रत्यक्ष पदार्थको जान लेना 'अनुमान' कहलाता है । जैसे कि दूरसे पर्वतमें किसी व्यक्तिका शब्द सुनकर यह पहचान जाना कि देवदत्त आता
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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