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________________ ५ जीव पदार्थ विशेष ११९ देखे नही जा सकते, परन्तु वस्तुओपर पड़नेवाला उनका प्रभाव अवश्य प्रतीतिमे आता है, जैसे कि अनेक प्रकारके रोगोत्पादक सूक्ष्म कीटाणु । इनसे भी आगे कुछ इतने सूक्ष्म होते है, जिनका कुछ प्रभाव भी प्रतीतिमे नही आता, परन्तु वे जीव होते अवश्य है। ये सब बातें ठीक-ठीक बुद्धिमे बैठा लेनी चाहिए। इस प्रकारके क्षुद्र तथा सूक्ष्म जीव सर्वत्र ठमाठस भरे पडे है। क्या पृथिवीके भीतर और क्या पृथिवीके ऊपर, क्या जलके भीतर और क्या जलके ऊपर, क्या वायुके भीतर, क्या फल-फूल आदि वनस्पतिके भीतर और क्या उनके ऊपर, क्या द्वीन्द्रियसे चतुरिन्द्रिय तकके कीड़े-मकोडेके शरीरोके भीतर, क्या पशु-पक्षी एवं मछलियो आदिके शरीरोके भीतर और क्या मनुष्योके शरीरोके भीतर सर्वत्र ये सूक्ष्म तया क्षुद्र जीव अपना अड्डा जमाये बैठे हैं । ___इनमे भी वे जीव जो कि आँखोसे दिखाई दे जाते है, उनके सम्बन्धमे तो कुछ विशेष बताना नही है क्योकि उन्हे सब कोई जानते हैं जैसे कि गीली पृथ्वी खोदनेपर उसमे चलते-फिरते अनेको जीव दिखाई देते हैं, अथवा कुएंसे या तालावसे भरे गये जलको यदि किसी वस्त्रमे-से छान लिया जाये तो उस कपडेपर चलते-फिरते अनेको छोटे-छोटे जीव दिखाई देते है, वायुमण्डलमे सचार करते हुए छोटे-छोटे अत्यन्त क्षुद्र कीट पतग भी सबके प्रत्यक्ष हैं, वरवटी, पीपलबटी, गोभी आदि कुछ वनस्पतियोमे भी यदि गौरसे देखा जाये तो ऐसे छोटे-छोटे उडते हुए जीवोका साक्षात्कार किया जा सकता है। पशु-पक्षियो व मनुष्योके पेटमे कितने इस प्रकारके जीव रहते हैं, यह सब जानते है । विष्टा व गोवर आदिमे देखनेपर वे दिखाई भी देते हैं। इसी प्रकार रक्तमे ऐसे असंख्यात जीव निवास करते हैं । आँखोंसे दीखनेवाले ये सब छोटे प्राणी त्रस जीव है इतना ध्यान रखना चाहिए, क्योकि ये चलते-फिरते देखे जाते हैं। भले
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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