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________________ १२० पदार्थ विज्ञान ही अत्यन्त क्षुद्र होनेके कारण प्रतीतिमे न आयें परन्तु उनका शरीर भी रक्त-मासादिका ही बना हुआ होता है। इनके अतिरिक्त कछ वे जीव जो आँखसे दिखाई नहीं देते, सूक्ष्म निरीक्षण यत्र द्वारा देखे जाते है। आजकी वैज्ञानिक अनुसन्धान शालाओमे नित्य ही यन्त्रोके द्वारा खोज-खोजकर कुछ इस विचित्र प्रकारके जीव-जन्तुओका पता लगाया जा रहा है, जिनका हमारे शारीरिक स्वास्थ्यके साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये इतने सूक्ष्म होते हैं कि सुईके अग्रभाग जितने स्थानमे भी अनेको निवास करते है। जल, दूध, रक्त आदि तरल पदार्थोंमे अथवा रोटी-भात आदि गोले अन्नमे अथवा फल-फूलोमे अथवा शाक-भाजीमे सरलतासे उत्पन्न हो जाया करते है। सबका परिचय तो यहाँ दिया जाना कठिन है, परन्तु उदाहरण के रूपमे कुछ यहाँ बता देना पर्याप्त समझता हूँ। जल, दूध या रक्त की एक बूंदको एक शीशेकी प्लेटपर डालकर उसपर दूसरी शीशेकी प्लेट रख देनेपर फालतू फालतू जल, दूध या रक्त प्लेटोसे वाहर निकल जाता है। उन प्लेटोंके बीच कितना कुछ रह जाता होगा यह आप अनुमान कर लीलिए। अव ज्यो की त्यो उन जुडी हुई प्लेटोको उस यन्त्रके नीचे ले जाकर देखनेपर आपको यह देखकर आश्चर्य होगा कि उन दोनो प्लेटोके वीचमे एक-दो नही सैकडो जीव स्वतन्त्रतासे तैरते फिरते हैं, बिलकुल उस प्रकार जिस प्रकार कि मछली जलमे तैरती है, अथवा केंचुए पृथ्वी पर रेंग-रेंगकर चलते हैं। वहां उन चलने-फिरनेवाले जीवोंके साथ झूण्डके झुण्ड वृक्ष, घास, फूस आदि भी दिखाई देते है। एक पूरी सृष्टि उस स्थानमे वास करती है, जिसका साधारण वुद्धिमे आना कठिन है, और इसलिए सम्भवत आपको विश्वास भी न आये। परन्तु हाथ कगन को आरसी क्या ? आजके वैज्ञानिक युगमे इस वातकी सिद्धि कठिन
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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