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________________ ३. पुद्गलं परिचय कर्म सिद्धान्त ३. जाति-भेद-ये स्कन्ध स्थूल तथा सूक्ष्म के भेद से अनेक प्रकार के हो जाते हैं। एक दूसरे में निर्बाध रूप से समा सकें और परस्पर में बाधा न पहुँचायें उन्हें सूक्ष्म कहते हैं जैसे कि एक्सरे तथा चुम्बक शक्तिकी किरणें । परस्पर में बाधक हों और एक दूसरे में न समा सके उन्हें स्थूल कहते हैं, जैस पत्थर लोहा आदि । कुछ पदार्थ सर्वथा स्थूल होते हैं, कुछ सर्वथा सूक्ष्म और कुछ मिश्रित अर्थात् कुछ अंशों में सूक्ष्म और कुछ अंशों में स्थूल । इस सूक्ष्मता व स्थूलता की तरतमता के कारण स्कन्धों को छ: भागों में विभाजित किया गया है-स्थूल स्थूल, स्थूल, स्थूल सूक्ष्म, सूक्ष्म स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्म-सूक्ष्म । पृथ्वी धातु आदि ठोस पदार्थ स्थूल-स्थूल अर्थात् अत्यन्त स्थूल हैं, क्योंकि एक तो किसी भी पदार्थ में प्रवेश नहीं पाते, सबको बाधा पहँचाते हैं और दूसरे जहाँ जिस रूप में रख दें वहाँ उसी रूप में टिके रहते हैं, अपने आप वहाँ से नहीं डिगते । जल, वायु आदि तरल तथा वायवीय पदार्थ स्थूल हैं, क्योंकि एक दूसरे को बाधा पहुँचाने के कारण स्थूल होते हुए भी ठोस नहीं हैं, और बिना किसी रुकावट के कहीं रखे नहीं जा सकते हैं । वस्त्र आदि में से पार भी हो जाते हैं । प्रकाश के कारण भूत स्कन्ध स्थूल-सूक्ष्म हैं । पृथ्वी आदिसे रुक जाने के कारण स्थूलता अधिक है और शीशे आदि में से पार हो जाने के कारण अथवा पकड़कर किसी प्रकार रोके नहीं जा सकते इसलिए कुछ सूक्ष्मता भी है। शब्दादि सूक्ष्म-स्थूल हैं। ठोस तथा तरल सभी पदार्थों में से कुछ न कुछ पार हो जाते हैं इसलिए सूक्ष्म हैं, परन्तु प्रयत्ल-विशेष से रोके जा सकते हैं इसलिए कुछ स्थूल भी हैं । किसी प्रकार भी रोके नहीं जा सकते परन्तु यन्त्रों के द्वारा काम में लाये जा सकते हैं ऐसे ऐक्सरे तथा चम्बक वर्गणायें सक्षम कहे जा सकते हैं । परन्तु आगम में इन्हें भी सूक्ष्म-स्थल की कोटि में गिना गया है। आगमगत मनो तथा तैजस वर्गणा सूक्ष्म हैं। कार्माण वर्गणायें जिनका कथन आगे आने वाला है जिनसे कि द्रव्य कर्म बनते हैं, सूक्ष्म-सूक्ष्म स्कन्ध हैं। सूक्ष्म तथा सूक्ष्म-सूक्ष्म जाति के स्कन्ध परमाणु की भाँति एक दूसरे में अवगाह पाकर एक ही स्थान में अनन्तों निर्बाध रूप से रह सकते हैं। परमाणु मिलकर पहिले स्वयं स्वाभाविक परिणमन द्वारा सूक्ष्म-सूक्ष्म अव्यवहार्य स्कन्ध बनते हैं। स्वतन्त्र रूपसे कुछ भी काम नहीं आते इसलिए अव्यवहार्य हैं। ये ही परस्पर में मिलकर अनेक जाति-की वर्गणओं के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं यथा आहारक वर्गणा, भाषा वर्गणा, मनो वर्गणा, तैजस वर्गणा, कार्माण वर्गणा। ये वर्गणायें ही सूक्ष्म-स्कन्ध (Molecule) का स्थान ग्रहण करती हैं। प्रत्येक वर्गणा अपनी-अपनी जाति के स्थूल-स्कन्धका निर्माण करती है, इसलिए व्यवहार्य हैं। आहारक वर्गणा से स्थूल पदार्थ बनते हैं। सभी स्थूल सूक्ष्म तथा सूक्ष्मस्थूल स्कन्धों से शब्द प्रकाश आदि का निर्माण होता है, इसलिए वे उसकी अपेक्षा कम स्थूल हैं । मनो वर्गणा से मनुष्यादिका सूक्ष्म माँस पिण्ड रूप मन बनता है इसलिए सूक्ष्म है । तैजस वर्गणाओं से पदार्थों में तथा शरीरों में कान्ति तथा चमक TRA
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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