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________________ कर्म सिद्धान्त ३. पुद्गल परिचय प्राप्त होते हुए एकमेक होकर स्कन्ध का रूप धारण करते हैं। जैसे कि सोने के साथ ताम्बा मिलकर एक डली बन जाती है । ऊपर कहा जा चुका है कि लोकाकाश के एक एक प्रदेश पर अनन्त-अनन्त परमाणु एक दूसरे में अवगाह पाए हए अवस्थित हैं तथा नित्य परिणमन कर रहे हैं । परिणमन के इस स्थायी प्रवाह-क्रम में, उनमें से कुछ कभी स्निग्ध हो जाते हैं और कुछ कभी रूक्ष । स्निग्ध का अर्थ यहाँ आकर्षण युक्त समझना जैसे Proton और रूक्षका अर्थ विकर्षण युक्त जैसे Electron | निकट सम्पर्क को प्राप्त होने पर ये भिन्न गुण धारी परमाणु परस्पर में दूध पानीवत मिलकर एकाकार हो जाते हैं, ऐसा उनका स्वभाव है । इस प्रकार के घनिष्ट संश्लेष-सम्बन्धको 'पुद्गल-बन्ध' कहते हैं । इसके कारण से बनने वाले अनेक प्रदेशी पुद्गल-पिण्ड की 'स्कन्ध' संज्ञा है। स्कन्ध में प्रतिक्षण कुछ नए परमाणु स्वयं मिलते रहते हैं और कुछ पुराने उससे पृथक् होते रहते हैं। इसका कारण भी उन परमाणुओं में स्वत: होने वाला स्निग्ध तथा रूक्ष परिणमन ही है। परमाणुओं से स्कन्ध का और स्कन्ध से परमाणुओं का मिलना तथा बिछुड़ना अथवा बनना तथा बिगड़ना-रूप यह क्रम सदा से स्वत: चल रहा है और इसी प्रकार सदा चलता रहेगा। इस स्वाभाविक व्यवस्था में हस्ताक्षेप करने का किसी को अधिकार नहीं। बनने बिगड़ने का स्वभाव रखने के कारण ही इसका नाम 'पु+गल' पड़ गया है। - आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से इलैक्ट्रोन तथा प्रोटोन दो प्रकार के अणु स्वीकार किये गये हैं। परमाणु व अणु में अन्तर है । परमाणु एक प्रदेशी होता है और अणु अनेक प्रदेशी सूक्ष्म स्कन्ध । यहाँ प्रोटोन स्निग्ध-स्थानीय और इलैक्ट्रोन रूक्षस्थानीय है। Like charge Reple & unlike attract each other अर्थात् समान गुणधारी अणु एक दूसरे से परे भागते हैं और असमान गुणधारी एक दूसरे से आकर्षित होते हैं । इस नियम के अनुसार एक इलैक्ट्रोन दूसरे इलैक्ट्रोन के साथ और एक प्रोटोन दूसरे प्रोटोन के साथ बन्ध को प्राप्त नहीं होते परन्तु अनेकों इलैक्ट्रोन किसी एक प्रोटोन के प्रति आकर्षित होकर उसकी परिक्रमा करने लगते हैं, जैसे सूर्य की परिक्रमा पृथ्वी, चन्द्र आदि अनेक ग्रह करते हैं। आगम भी यही कहता है। स्निग्ध परमाणु स्निग्ध के साथ और रूक्ष रूक्ष के साथ नहीं बन्धता, परन्तु स्निग्ध व रूक्ष में परस्पर बन्ध होता है। यहाँ इतना समझते रहना चाहिए कि स्निग्धत्व तथा रूक्षत्व तरतमता की अपेक्षा से कहे गए हैं। जिस प्रकार ६० डिग्री तापमान वाला २० डिग्री तापमान वाले की अपेक्षा उष्ण है और २० डिग्री वाला ६० डिग्री वाले की । अपेक्षा शीत है; उसी प्रकार अधिक अंश स्निग्धत्व वाला परमाणु हीन अंश स्निग्धत्व वाले की अपेक्षा स्निग्ध और हीन अंश स्निग्धत्व वाला परमाणु अधिक अंश स्निग्धत्व वाले की अपेक्षा रूक्ष कहा जा सकता है। सभी दृष्ट पदार्थों का निर्माण इसी प्रकार विषम परमाणुओं के संश्लेष द्वारा होता है और यही पुद्गल-बन्ध या द्रव्य-बन्ध कहलाता है।
SR No.009554
Book TitleKarma Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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