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________________ ( ११ ) और वे यह कौतुक देखनेको वहाँ एकत्र हो आये । इसी समय शिवकुमार नाम राजपुत्र भी वहां बाया और मुनिको देख मोहयुक्त हो विनय सहित नमस्कार कर मोह उत्पन्न होनेका कारण पूछा। तब उसे स्वामीने पूर्व भवका वृचात सुनाया । सुनते ही राजपुत्रको मूर्छा आ गई। यह वृत्तात मंत्रियोंने जाकर राजासे कहा और राजपुत्रको उपचार वर सचेत किया । राजा रानी सहित तुरंत ही वहाँ आये, और पुत्रको घर ले जाने लगे । तब शिवकुमार बोले - " हे पिता ! ये भोग भुजंगके समान है, क्षणभंगुर हैं। मैं अब घर न जाऊँगा, किन्तु महात्रत लेकर यहाँ ही गुरुके निकट स्वात्मानुभव करूँगा । " तत्र राजा बोले- 'पुत्र ! अभी तुम्हारी बाल्यावस्था हैं, कोमल शरीर है, जिनदीक्षा अतिदुर्धर हैं, इसलिये कुछेक दिन राज्य कर हमारे मनोरथोंको पूर्ण करो। पीछे अवसर पाकर व्रत लेना । यह अवस्था तप करनेकी नहीं है । इत्यादि नाना प्रकार राजाने समझाया परंतु जब देखा कि कुमार मानते हो नहीं तब लाचार हो कहने लगे पुत्र ! यदि तुम्हें ऐसा ही करना है, तो मुनिद्रत न लेकर क्षुल्लक के ही व्रत लो और यदि ऐसा न करोगे तो मैं प्राणत्याग करूँगा । तब शिवकुमारने माता पिताके वचनानुसार शुलक के व्रत लिये । घरमें ही रहकर चौसठ हजार वर्ष तक केवल भात और पानीका आहार कर निरतर धर्मध्यानमें काल व्यतीत किया और सागरचन्द्र मुनि यहाँसे विहार करके उम्र तप करते हुए समाधिमरणकर ब्रह्मोत्तर छटवें स्व में देव हुए और शिवकुमार क्षुल्लक भी
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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