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________________ (११) इस प्रकार वे देव स्वर्गमें सागरों पर्यन्त सुख भोग वहाँसे चय,भावदेवका जीव अपरविदेह पुंडरीकिणी नगरीम वज्रदंत राजाकी पट्टरानीसे सागरचन्द्र नामका पुत्र हुआ, और भवदेवका जीव वीतशोकपुरमें महापद्म चक्रवर्तीके यहाँ वनमाला रानीके गर्भसे शिवकुमार नामका पुत्र हुमा । सो वे दोनों निग निन म्यानमें वृद्धिको प्राप्त होकर अनेक प्रकारकी विद्याओंका अभ्यास करने लगे। एक समय पुंडरीकिणी नगरीके उद्यानमें मुनिवरका आगमन जानकर सागरचंद्र राजपुत्र वंदनाको गया और श्रीगुरुको नम-स्कार कर धर्मका स्वरूप पूछा । तव स्वामीने मुनि और श्रावकके व्रत और संसारकी क्षणभंगुरताका वर्णन किया, तथा सागरचन्द्रके पूवभव भी वर्णन किये। यह सुनकर सागरचद्र संसार देह भोगोंसे विरक्त हो मुनि हुमा और निरतर जप तप संयममें उत्तरोत्तर अधिक तत्पर रहने लगा। वहुत समय पंछ सागरचन्द्र मुनि गुरु सहित विहार करके वीतशोकपुर नगरके उद्यानमें आये और यह शरीर तप व्रतादिका साधन है सो आयु प्रमाण स्थिर रहे और धर्मध्यानमें किसी तरह शिथिल न होने पावे, जैसे चाकमें तेल देनेसे गाड़ी बेरोक चली जाती है, इसी तरह यह भो शिथिल हुए बिना मोक्ष नगरके द्वार तक अरोक चला जाय, ऐसा चितवन कर उदासीन वृत्तिसे नगरमें चर्या निमित्त प्रयाण किया श्रावकगण द्वाराप्रेक्षण कर हो रहे थे, सो उन्हें नवधा भक्ति सहित पड़गाहन कर मुनको आहार दिया। मुनिरानने 'अक्षयदान हो" ऐसा कह दिया। सो मुनिदानके प्रभावसे वहॉ पंचाश्चर्य (रत्नवृष्टि,पुष्पवृष्टि, गंधोदककी वृष्टि,मंद सुगंध पवन और देवदुंदुभि) हुए। इससे नगरके सब लोगों को आश्चर्य हुआ
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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