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________________ अवसर पासमाधिमरणकर उसी ब्रह्मोत्तर स्वर्गम देव हुए और पूर्वतपके प्रभावसे नाना प्रकार सुख भोगने लगे। सो हे रानन् ! यह विद्युन्माली देव पूर्व तपन्याके प्रभावसे ऐसा अद्भुत कांतिवान् हुआ है।" तब राना श्रेणिकने विनययुक्त हो पूछा-'हे प्रभो । इनका विशेष हाल सुनाना चाहता हू सो कृपा कर कहो। तब स्वामी बोले 'अग देशमें चंपापुरी नामकी एक नगरी है, वहाँ सूरसेन नामका सेठ रहता था। उसके अतिरूपवती चार मियाँ थीं। एक समय किसी पूर्व पापके उदयमे सेठको वायुरोग हो गया जिससे वह वावलेकी तरह बकने और त्रियोंको नाना प्रकारसे कष्ट देने लगा। यहाँतक कि उसने चारों स्त्रियों के नाक, कान भी काट डाले इससे वे अतिदखित होकर वासुपूज्यन्वामी के चैत्यालयमें जाकर माथिका हो गई और समाधिमरण करके इस हो छठवें स्वर्ग में चारों देवी हुई है। सो जंबूस्वामी, विद्युत्चर और ये देवियों यहाँसे चय साथ ही दीक्षा लेवंगी।" इसका विशेष वर्णन इस प्रकार है सो सुनो-"हस्तिनापुरके राना दुरदन्दके शिवकुमारका जीव छठवें स्वर्गसे चयकर विद्युतचर नामका पुत्र हुआ, सो महाबलवान्, प्रतापी और सर्व विद्याओं में निपुण हुआ। यहाँ तक कि उसने चोरी भी सीख ली सो प्रथन ही उसने रामभंडार चुरानेको प्रवेश किया ही था कि उसे कोटवालने पकड़ कर रागके सन्मुख उपस्थित कर दिया। राजा पुत्रकी यह दशा देख बहुत दुखी हुए और कहने लगे-“हे बालक! तू यह सब राजभडारले, परतु चोरी करना छोड़ दे क्योंकि इच्छित वस्तु
SR No.009552
Book TitleJambuswami Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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