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________________ mammu.ruirrormananrarmirmir गौतम चरित्र। जो भव्य पुरुष भगवानकी पूजा करते हैं, उनकी सुमेरु पर्वतके मस्तक पर देवों और इन्द्रों द्वारा पूजा होती है। जो 'अहिद्भयोनमः' इस प्रकार ऊंचे स्वरमें उच्चारण करते हैं, वे उत्तम तथा यशस्वी होते हैं। परमात्माकी स्तुतिसे पुण्य समुदायकी कितनी वृद्धि होती है, इसका वर्णन करना सर्वथा कठिन है। जो लोग भगवानको निन्दा करते हैं, वे कर जीत्रोंसे भरे हुए इस संसार रूपी वनमें दुःखी होकर भ्रमण किया करते हैं। वे. नीव सदा लोभके वशीभूत होकर यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेतादिकी: उपासना करते रहते हैं। मिथ्याचारी मनुष्य धन आदिकी इच्छासे पीपल कुआ तथा कुल देवियोंकी पूजा करते हैं। जो मुनिगज सम्यक् चारित्रसे सुशोभित हैं और आत्मा एवं समस्त,जीवोंको तारनेके लिए तत्पर रहते हैं, वे विद्वानों द्वारा गुरु माने जाते हैं । जिनसे मिथ्या ज्ञानका विनाश हो एवं अधर्मका नाश और धर्मको अभिवृद्धि होती हो, वे ही गुरु भव्यजीवोंकी सेवाके अधिकारी हैं। माता, पिता, भाई, बंधु किसीमें भी सामर्थ्य नहीं कि इस भवरूपी संसारमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार कर सकें। मिथ्याज्ञानसे भरपूर पाखण्डी त्रिकालमें भी गुरु नहीं माने जा सकते । भला जो स्वयं मिथ्या शास्त्रोंमें आसंक्त हैं, वह दूसरोंका क्या उपकार कर सकता है। जो भगवानः जिनेन्द्रदेवकी दिव्य-वाणीका श्रवण नहीं करते, वे देव अदेव धर्म, अधमे, गुरु, कुगुरु हित, अहितका कुछ भी ज्ञान नहीं रखते हैं। जो लोग जैन धर्मको भी अन्य धर्मों की भांति समझते है, वे वस्तुत: लोहेको मणि और अन्धकारको प्रकाश समझते हैं।
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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