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________________ ........ananaAM चतुर्थ अधिकार। जिसने भगवानको दिव्य-बाणी नहीं सुनी, उसका जन्म ही व्यर्थ है । जिसने जिनवाणीका उच्चारण नहीं किया, उसकी जीभ व्यर्थ ही बनाई गयो। जिसमें तीनों लोकोंकी स्थिति, सप्ततत्वों, नव पदार्थों', पांच महायतोका वर्णन हो तथा धर्म, अधर्मका स्वरूप बतलाया गया हो,वही विद्वानों द्वारा कही गयी जिनवाणी है । सूर्यके अभावमें जिस प्रकार संसारके पदार्थ दिखाई नहीं देते, ठीक उसी प्रकार जिनवाणोके बिना ज्ञान होना संभव नहीं है । देव, शास्त्र और गुरुका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। यह सम्यग्दर्शन मोक्ष मार्गका पाथेय और नरकादि मार्गोका अवरोधक है। यतः बुद्धिमान लोग सम्यग्दर्शन काही प्रहण करते हैं। यह अज्ञान-तमका विनाशक और मिथ्याचारका क्षय करने वाला है । इसके बिना व्रत शोभायमान नहीं होते। जिस प्रकार देवोंमें इन्द्र, मनुष्योंमें चक्रवर्ती और समुद्रों में क्षीरसागर श्रेष्ठ है, उसी प्रकार समस्त व्रतोंमें सम्य. ग्दर्शन ही श्रेष्ठ है । दरिद्र और भूखा सम्यग्दीको धनी ही समझना चाहिए और उसके विपरीत सम्यग्दर्शन हीन धनीको निर्धन । इसीके प्रभावसे मनुष्योको सांसारिक संपदायें प्राप्त होती हैं और रोग-शोकादि सब कष्ट दूर होते हैं। सम्यग्दर्शी को भोगोपभोगकी सामग्रियां मिलती हैं तथा सूर्यके समान उनकी कीर्ति प्रकाशित होती है। वे अपने रूपसे कामदेवको भी परास्त करते हैं और उन्हें इन्द्र, चक्रवर्ती आदि अनेक पद प्राप्त होते हैं। उन्हें देवांगनाओं जैसी सुन्दरियां प्राप्त होती हैं और चारों प्रकारके देव उनकी सेवा करते हैं। सम्यग्दर्शनका
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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