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________________ .२० गौतम चरित्र। देखा। वे दीन स्वभाव की, दुखी और माता-पिता भाई आदि से रहित थीं। उन्हें देखकर राजाका हृदय दयापूर्ण हो गया । उनके नेत्र खिल उठे तथा मन प्रसन्न होगया। इस प्रकार का परिवर्तन देखकर राजाको बड़ा आश्चर्य हुआ। वे सद्भावके साथ उन्हें देखने लगे। इसके पश्चात् उन्होंने मुनिराजकी स्तुति कर पूछा-भगवन! इन कुरूपा कन्याओंको देख मेरे हृदयमें प्रेमके भाव क्यों भकुरित होरहे हैं। उत्तरमें मुनिराज कहने लगे- राजन ! इस स्थल पर प्रेम उत्पन्न होनेका कारण पूर्वभवका सम्बन्ध है । मैं बतलाता हूं। ध्यान देकर श्रवण करो। भरतक्षेत्रमें ही काशी नामका एक सुविस्तृत देश है। वह तीर्थंकरोंके पंच-कल्याणकोंसे सुशोभित है। वहांके नगर ग्राम और पत्तनकी शोभा अपूर्व है। वह रत्नोंकी खानके नाम से प्रसिद्ध है। उसी देशमें बनारस नामका एक अत्यन्त मनोहर नगर है। वह इतना सुन्दर है कि,मानों विधिने अलका नगरीको जीतनेके लिऐ ही उसका निर्माण किया हो। आकाशको स्पर्श करनेवाले उसके चारों ओर सुविशाल कोट हैं। कोटकी ऊंचाई इतनी ऊंची है, जिससे प्रतीत होता है कि क्रोध करने पर वह सूर्यके तेज और बादलोंके समूहको भी रोक सकती हैं। कोटके चारों ओर खाई थी, जिसे देखकर शत्रुओंके छक्के छूट जाते थे। वह खाई निर्मल और गंभीर जलसे परिपूर्ण थी। इसलिए यह एक सुपटु कविकी कविताके समान सुशोभित थी। वहांके जिनालय अपनी फहराती हुई शुभ्र ध्वजासे भव्य जीवों को पवित्र करनेके उद्देश्यसे वुला रहे थे। वहांके मकानोंकी
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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