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________________ द्वितीय अधिकार। १६ सेवनसे, दूसरेके धन अपहरणसे, किसीकी धरोहर ले लेनेसे कठिन पाप होता है, अर्थात् महापाप लगता है । जीवोंकी हिंसा करने, झूठ बोलने, अधिक परिग्रहकी इच्छा रखने और किसीके कर्म में विघ्न उपस्थित करनेसे भी पापका भागी होना पड़ता है। मद्य, मांस, मधु भक्षण और हरे कन्द-मूल आदि पदार्थोके भक्षणसे भी पाप लगता है। बिना छाने हुए जलसे भी बड़ा पाप लगता है। कुत्ता, 'बिल्ली आदि दुष्ट जीवोंके पालन-पोपणसे भी पापका भागी बनना पड़ता है। इस प्रकार के पापकर्मके उदयले ये जीव कुरूप, लंगड़े, काने, टौंटे, बौने अन्धे, कम आयु वाले, अगोपांग रहित तथा मूर्ख उत्पन्न होते हैं। पापकर्मके उदयसे ही दरीद्री नीच अनेक शारीरिक व्याधियोंसे पीड़ित और दुःखी उत्पन्न होते हैं। जीवोंके अपयश बढ़ाने वाले लम्पट दुराचारी तथा नित्य कलह करनेवाले पुत्रका उत्पन्न होना भी पापका ही कारण है। अक्सर पापकर्म से ही स्त्रियां काली, कलूटी तथा दुवैचन कहनेवाली मिलती हैं। साथ ही पापकर्मसे ही लोगोंको भीख मांगनेके लिए विवश होना पड़ता है। यहांतक कि उन्हें स्वादहीन 'मिट्टीके वर्तनमें रखा हुभा भोजन करना पड़ता है। अतएव राजन् ! इस संसारकी जितनी दुःख प्रदान करनेवाली वस्तुएं हैं,वे सब की सब पाप कर्मोंके उदयसे ही प्राप्त होती हैं । संसारमें जो कुछ भी बुरा है, उसे पापका ही फल समझना चाहिये । मुनिराजने इस प्रकार पुण्य और पापके फल कह सुनाये । महिचन्द्र को अपूर्व संतोप हुआ। इधर राजाने तीनों कुरूपा कन्याओं को
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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