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________________ Armaanmam द्वितीय अधिकार। २१ पन्क्तियां ऊंची और भव्य थीं। उन पर तरह तरहके चित्र बने हुए थे । वे बर्फ और चन्द्रमाकी तरह शुभ थीं। इसीलिए दर्शनीय थीं। उन्हें देखकर यही प्रतीत होता था कि मुक्काकी सुन्दर मूर्तियां प्रस्तुत की गयी हों ।वहांके मनुष्य स्वभावसे ही दान करने वाले थे। वे भगवान जिनेन्द्र देवकी सेवामें सहन रहने वाले थे। परोपकार, धर्मकार्यमें उनके आचरण अनुकरणीय थे। वहांकी स्त्रियोंका तो कहना ही क्या ? वे देवांगनाओंको भी रूपमें परास्त करती थीं। वे सौभाग्यवती गुणवती पतिप्र ममें सदा तत्पर रहनेवाली थीं। वहांके बाजार भी अपनी अपूर्व विशेषता रखते थे। दुकानोंकी पंक्तियां इतनी सुन्दरता के साथ निर्मितकी गयी थीं कि,उन्हें देखते रहनेकी इच्छा होती थी। वह नगर सोने चांदी रत्न और अन्नादिसे सर्वथा भरपूर था । संध्याके वादसे वहां की स्त्रियां ऐसे मधुर स्वरमें गाने लगती थीं कि आकाश मार्गसे जाते हुए चन्द्रमाको भी उनके लालित्य पर मुग्ध होकर कुछ देरके लिए रुक जाना पड़ता था। इस प्रकार वे चन्द्रमाको भी रोक लेनेमें समर्थ थी। रात्रि कालमें अपने इच्छित स्थानको गमन करने वाली वेश्याएं भी चञ्चल नदीकी भांति लहराती हुई देन पड़ती थीं। बावड़ियों से जल भरने वाली पनिहारियां भी क्रीड़ा करती हुई नजर आती थीं। कमलोंकी सुगन्धिसे भ्रमण करते हुए भौरे उन्हें दुखी कर रहे थे। उनकी जलक्रीड़ासे उनके शरीरसे जो केसर धुलकर निकल रही थी, उससे भौरोंके शरीर पीले पड़ रहे थे। और उन्हीं सरोवरों में कामी पुरुष अपनी रमणियोंके साथ
SR No.009550
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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