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________________ (८६८) चरकसंहिता-मा० टी०॥ प्रवेशेपूर्णकुम्भाग्निमृद्दीजफलसर्पिषाम् । वृषब्राह्मणरत्नानांदेव तानांविनितिम् ॥ ३१ ॥ अग्निपूर्णानिपात्राणिभिन्नानिविशिखा निच । भिषङ्मुमूर्षतांवेश्मप्रविशन्नेवपश्यति ॥ ३२ ॥ जब वैध रोगीके घरमें प्रवेश करें उस समय रोगीके घरसे जलका भरा कलश आग्ने, मृत्तिका, फल, बीज, घृत, बैल, ब्राह्मण, रस्न और देवता आदिको बाहर निकलते देख तथा उसके घरके पात्रोंको अग्निसे भरेहुए, फूटेहुए, विना गलेके देखें तो समझे कि इस रोगीका मरण होनेवाला है ॥ ३१ ॥ ३२ ॥ छिन्नभिन्नविदग्धानिभमानिमुदितानिच ।। दुबलानिचलेवन्तेमुमूर्षावैश्मिकाजनाः ॥ ३३ ॥ अथवा रोगीके घरके मनुष्य-छिन्न, भिन्न ( फूटे टूटे ), जलेहुए; फटेहुए,मलिन और दुर्बल वस्त्र आदि अशुभ द्रव्योंको धारण किये बैठे हों एवं अशुभ शब्दोंका करते हों तो रोगीका मृत्यु समीप जानना ॥ ३३ ॥ शयनवसनयानंगमनंभोजनरुतम्। श्रूयतेऽमङ्गलंयस्यनास्तितस्यचिकित्सितम् ॥ ३४ ॥ : जिस रोगीको शय्या बिछाते समय, वस्त्र पहिनाते समय अथवा वैठते, उठते, चलते, फिरते, भोजनफरते समय रोनेकी अथवा अशुभ आवाज आती हो उस रोगीकी कोई चिकित्सा नहीं है ॥ ३४॥ शयनंवसनयानमन्यद्वापिपरिच्छदम् । प्रेतवद्यस्यकुर्वन्तिसुहृदःप्रेतएवसः॥३५॥ जिस रोगीके सुहृद्गण सोना,बैठना,उठना,वस्त्र पहिनाना,वा अन्य सब कर्म मरे हुएके समान करते हों उसको मराहि जानना चाहिये ।। ३५ ॥ अनंव्यापद्यतेऽत्यर्थज्योतिश्चैवोपशास्यति। निवातेसेन्धनयस्यतस्यनास्तिचिकित्सितम् ॥ ३६ ॥ निस रोगीके लिये पथ्य आदि बनाते हुए किसी न किसी प्रकारका अशुभ उपः द्रव होजाय जिससे पथ्य बननेमें कोई विघ्न होजाय तथा विनाही पवनकेलगे लकी. आदि रहते हुए भी अग्नि बुझजाय अथवा तेल बत्ती रहतेहुए भी बिनाही कारण: दीपक बुझजाय उस रोगीकी चिकित्सा नहीं है अर्थात् वह मरजानेवाला है ॥३६
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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