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________________ चरकसंहिता-मा० टी०। भिद्येतवंक्षणीयस्यवातशूलै समन्ततः। सिन्नंपुरीषंतृष्णाचसद्यःप्राणाञ्जहातिसः॥११॥ जिस गेल के दोनों वंक्षणों जांघोंकी सन्धियों में वायुके शूलोंसे सर्वतः अत्य. न्त भेद काटनेकीसी पीडा) होतीहो तथा साथही दस्तोंका लगना और दारुण प्यास भी हो वह मनुष्य शीघ्र अपने जीवनको त्याग देताहै ॥११॥ आप्लुतमारतेनेहशरीरयस्यकेवलम् । भिन्न पुरषितृष्णाचसद्योजह्यात्स्टजीवितम् ॥ १२॥ जिस मनुष्यका शरीर फेवल वायुके वेगसेही पसीनेसे भीग जाय और साथमें दस्तोंका वेग तथा प्यास भी हो वह शीघ्र अपने जीवनको त्याग देताहै ॥ १२ ॥ शरीरंशोफितंयस्यवातशोफेनदेहिलः। भिन्नंपुरीषतृष्णाचसद्योजह्यासजीवितम् ॥ १३॥" जिस मनुष्यका शरीर वायुकी सूजनसे सूजाहुआ हो और उसको दस्त तथा ध्यासकी भी अधिकता होजाय तो वह मनुष्य शीघ्र ही मृत्युको प्राप्त होताहै॥१५ " आमाशयसमुत्थानायस्यस्यात्परिकर्तिका। तृष्णागुदग्रहश्चोग्रःसद्योजह्यात्सजीवितम् ॥ १४॥ . जिस मनुष्यके आमाशयमें मांस काटनेकी सी पीडा हो और अधिक प्यास खथा गुदामें उग्र पीडा भी साथमें प्रगट होजाय वह मनुष्य शीघ्र ही मरजाताहै॥१४॥ पक्वाशयमधिष्ठायहत्वासंज्ञाश्चमारुतः । • कण्ठेघुर्घरकंकत्वासद्योहरतिजीवितम् ॥ १५॥ जिस मनुष्यके पक्काशयमें वलवान् वायु प्रविष्ट होकर संज्ञाको नष्ट कर देताहै अर्थात् बेहोश करदेताहै और कण्ठमें घुरघुर शब्द करने लगताहै वह मनुष्य शीघ्र मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ १५ ॥ दन्ताःकर्दमचाभामुखंचूर्णकसान्निभम् । . . . शिप्रायन्तेचगात्राणिलिङ्गंसद्योमरिष्यतः ॥ १६ ॥ जिस रोगीके दांतोंपर कीचडसा लगा हो और सफेद चूनासा बुरका प्रतीत होता हो तथा मुख भी चूने के समानसफेत होगया हो तथा सब अंग पसीनेसे युक्त . हों और शिथिल होजाय उसे शीघ्र मरनेवाला जानना ॥ १६ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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