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________________ (८६५) इन्द्रियस्थान-१० १०. क्षीणशोणतमांसस्यवायुरूर्द्धगतिश्चरन् । . उभेमन्थेसमेयस्यसद्योमुष्णातिजीवितम् ॥ ५॥ जिस रोगीके रक्त और मांस क्षीण होगये हों तथा वायु ऊर्ध्वगतिसे चलनेलगें और दोनों मन्या (ठोडीकी दोनों ओरकी नाडिये ) अकडजाय वह मनुष्य शीघ्र मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ ५ ॥ अन्तरेणगुदंगच्छन्नाभिश्चसहसानिलः। कशस्यवंक्षणौगृह्णन्सद्योमुष्णातिजीवितम् ॥६॥ यदि क्षीण रोगीके शरीरमें वायु गुदासे नाभिमें होतीहुई दोनों वक्षों को ग्रहण करे अर्थात् गुदामेसे वायु उठकर नाभिमें प्रवेश करतीहुई दोनों वक्षणों (वक्खी) है। दारुण पीडाको उत्पन्न करे तो वह मनुष्य शीघ्रं मरजाताहै ॥६॥ वितत्यप कायाणिगृहत्विोरश्वमारुतः। स्तिमितस्यायताक्षस्यसयोमुष्णाति जीवितम् ॥७॥ जिस रोगीके दोनों पांसुओंका अग्रभाग वायुसे फैलजाय तथा उसकी छातीको वायु रुककर अत्यन्त पीडा उत्पन्न करे उस पडिासे रोगीका संपूर्ण शरीर गीला होजाय और आंखें वडी २ खुलजायँ तो उस रोगीका शीघ्र मरण होताहै ॥७॥ हृदयञ्चगुदश्चोभेगृहीत्वामारुतोबली। दुर्बलस्यविशेषेणसयोमुष्णातिजीवितम् ॥८॥ यदि दुर्बल रोगीके हृदयको और गुदाको रोककर बलवान् वायु अत्यंत पीडा उत्पन्न करे तो वह रोगी शीघ्र अपने जीवनको त्यागदेवाहै ॥ ८॥ वंक्षणाचगुदश्चोभेगृहीत्वामारुतोबली। .. श्वासंसञ्जनयञ्जन्तोःसयामुष्णातिजीवितम् ॥९॥ याद बलवान् वायुं दोनों वंक्षण और उत्तरगुद तया अधोगुदको रोककर उनमें अत्यंत पंडिा करताहुंआ श्वासको उत्पन्नकर देवे तो रोगीके प्राणोंको शीघ्र नष्टकर देताहै ॥९॥ नाभिवस्तिशिरोमूत्रं पुरीषञ्चापिमारुतः। विबध्यजनयञ्छ्रलंसद्योमुष्णातिजीवितम् ॥ १०॥ यदि बलवान् वायु मनुष्यके नाभि, बस्ति, शिर, मूत्र और पुरीषको रोककर दारुण शूलको उत्पन्न करदेवे तो मनुष्यका जीवन शीघ्र नष्ट होजाताहै ॥१०॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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