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________________ इन्द्रियस्थान - अ० १. (८११/ रोग जीवन, मरण तथा आयु विशेष के प्रमाण जानने की इच्छा करनेवाले वैद्यकों योग्य है कि, प्रत्यक्ष, अनुनान और आप्तोपदेशके द्वारा परीक्षा करे ॥ १ ॥ परीक्ष्यवस्तुओंके भेद | तत्रतुखलु एषांपरीक्ष्याणां कानिचित्पुरुषमनाश्रितानि कानिचिचपु :रुषसंश्रयाणि । तत्रयानिपुरुषमनाश्रितानितानि उपदेशतोयु कित परीक्षेत | पुरुषसंश्रयाणिपुनःप्रकृतितश्चविकृतितश्च ॥ २ ॥ इन सब प्रकार की परीक्षाओंमें बहुतसी परीक्षा तो पुरुषके आश्रय होती हैं और बहुतसी ऐसी हैं जो पुरुषाश्रित नहीं हैं । उनमें जो पुरुषाश्रित नहीं हैं उनकी उपदेश और युक्ति अर्थात् अनुमान और आप्तोपदेशके द्वारा परीक्षा करनी चाहिये । एवम् जो पुरुषाश्रित हैं उनकी प्रकृति और विकृतिद्वारा परीक्षा करनी चाहिये ॥ २ ॥ I प्रकृतिवर्णन | तत्र प्रकृतिजीतिप्रसक्ता कुलप्रसक्ताच देशानुपातिनीच कालानुपातिनीचवयोऽनुपातिनीचं प्रत्यात्मनियताचेति । एतावज्जातिकुल: : देशकालवयः प्रत्यात्मनियताहितेषां तेषां पुरुषाणांते ते भावविशेषा भवन्ति ॥ ३ ॥ प्रकृति (स्वभाव) की परीक्षा इतने प्रकारकी होती है । जैसे- जातिगत प्रकृति, कुलगत प्रकृति, देशके अनुरूप प्रकृति, तथा समयानुरूप प्रकृति और प्रतिपुरुषमें उसकी आत्मनियत प्रकृति इसप्रकार पुरुषकी जाति, कुल, देश, काल, अवस्था और शररिभेदसे प्रकृति अर्थात् स्वभाव प्रत्येक पुरुषका उसके अनुरूप होता है सौं इन भेदोंसे और पुरुष भेदसे मनुष्यों में भाव विशेष होते हैं । इन सब भावका अपने अपने ठीक स्वभावमें रहना प्रकृति कहाजाताहै ॥ ३ ॥ विकृतिका वर्णन । विकृतिः पुनर्लक्षणनिमित्ताचलक्ष्यानिमित्ताचनिमित्तानुरूपाच । तत्रलक्षणनिमित्तानामसायस्याः शरीरेलक्षणान्येव हेतुभूतानि भव-न्ति । लक्षणानिहिकानिचिच्छरीरोपनिबद्धानि भवन्तिायानिहित स्मिंस्तस्मिंस्तत्राधिष्ठान मासाद्यतां तांविकृतिमुत्पादयन्ति ॥ ४ ॥ आर विकृति तीन प्रकार की होती है । जैसे-लक्षणनिमित्ता विकृति, लक्ष्यनि मत्ता विकृति और निमित्तानुरूपा विकृति । शरीरकी आरोग्यता के हेतुभूत जो
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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