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________________ शारीरस्थान-अ०८ (७७) तथासर्वासांजीवनीयोक्तानामोषधीनांसदोपयोगस्तैस्तैरुपयोगविधिभिरितिग स्थापनानिव्याख्यातानिभवन्ति ॥ ३९ ॥ इन्द्रायण, ब्राझी, सफेद दूब, काली दूब, अमोघा, अव्यथा (गेंदा), हरड, बला, नीम, कुटकी, गंगरेण, प्रियंगु, शतावर इन औषधों से किसी एक औषधाको पुष्यनक्षत्र में उखाडकर उसके स्वरसको दक्षिण हाथसे दहिनी नासामें टपकावे और शिरके दहिनी और दाहने हाथसे धारणकर रक्खे तथा इन्हीं सव औषधियोंके साथ सिद्ध किये हुए दूध और घृतको पान करे। एवम् इन्हींसे औटाये जलसे हरएक पुष्य नक्षत्र में स्नान किया करे इनके उपयोगसे गर्भस्थापन होताहै । अथवा जीवनीयगणकी संपूर्ण औषोंके उपयोगसे सिद्ध किये दूध, धृत आदिक और पूर्वोक्त विधानसे पुष्पनक्षत्रमें सब उपयोग करनेसे गर्भस्थापन होताहै ॥ ३८ ॥ ३९ ॥ गर्भनाशक भाव। गर्भापघातकरास्त्विमेभावाभवन्तितद्यथाउत्कटुकविषमस्थानं कठिनासनसविन्यावातमूत्रपुरीषवेगानुपरुन्धत्यादारुणानुचितव्यायामसेविन्यास्तीक्ष्णोष्णातिमात्रसेविन्या प्रमिताशनसेविन्यागभोम्रियतेऽन्तःकुक्षेरकालेवाख्रसंतेशोषीवाभवति ॥४०॥ गर्भके उपघात करनेवाले यह भाव हैं। जैसे गर्भवती स्त्रीका उत्कट रीतिसे बैठना अथवा ऊंचेनीचे तथा विषमस्थानमें फिरना, कठिन आसन आदिसे बैठना, बात, मूत्र और पुरीषके वेगको रोकना, दारुण और अनुचित परिश्रम आदि करना, तीक्ष्ण तथा उष्ण द्रव्योंका अधिक सेवन करना, बहुत भूखे रहना इत्यादि कारजोसे गर्भ कुक्षीमेंही मरजाताहै अथवा स्राव होजाताहै या सूखजाता है ॥ ४०॥ तथाभिघातप्रपीडनैःश्वभ्रकूपप्रपातदेशावलोकनैर्वाभीक्ष्णंमातुःप्रपतत्यकाले । तथातिमात्रसंक्षोभिभिर्यानैरप्रियातिमात्रश्रवणैर्वा । प्रततोत्तानशायिन्याःपुनर्गर्भस्यनाझ्याश्रयानाडी कण्ठमनुवेष्टयति ॥४१॥ इसप्रकार चोट आदि लगनेसे,किसीमकारसे गर्भके दवजानेसे तथा अत्यंत भयंकर, गढे, कूप, पहाडके विकट गिरेहुए किनारोंका देखना आदि भयकारक स्थानोंको देखनेसे भी गर्भपात होजाताहै । अथवा गर्भवतीके शरीरमें किसीप्रकार 'अत्यन्त हलचल होजानेसे वा किसी विकट सवारीपर चढनेसे एवं अंत्यन्त भयंकर
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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