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________________ (७७२) चरकसंहिता-मा० टी०। अथवा सुवर्ण, चांदी या लोहेको उत्तम भस्म लेकर अपने अनि वर्णके समान सूक्ष्म मात्रासे दही अथवा दूध या एक अंजली जलके साथ पुष्यनक्षेत्र में पीवे । ( वाग्भटने लिखा है कि सोने चांदी अथवा लोहेका एक छोटासा पुरुष बना उसको अनिमें वपा एक अंजली जलमें अथवा दूध या दहीमें बुझाकर उस जल या दूध दहीको पीवे) ॥३४॥ पुष्योद्धृतलक्ष्मणामूलस्यपयसापुत्रकामोऽस्यदक्षिणनासापुटे कन्याकामस्य वामनासापुटसिंचेत् । एवं श्वेतकंटकार्यारस- सिंचनेनपुत्रावातिः। पुष्यणवचपिष्टस्यपच्यमानस्योष्माणमु- . पनायतस्यैवचपिष्टस्योदकसंसृष्टस्यरसंदेहलीमुपनिधायदक्षिणेनासापुटेस्वयमासिञ्चत्पिचुना ॥ ३५ ॥ इति सवनानि यच्चान्यदपिब्राह्मणाब्युराप्तावापुंसवनमिष्टंतच्चानुष्ठेयम्॥३६॥ अथवा पुण्यनक्षत्रमें उखाडीहुई लक्ष्मणाकी जडको दूधमें घोटकर पुत्रकी इच्छावाली स्त्री नाकके दहिनेनथने और कन्याकी कामनावाली वायें नथने द्वारा पावे। या नस्यके प्रकारसे टपकावे । इसीप्रकार रविवार पुष्पमें उखाडीहुई सफेद कटेलोका रस भी पुत्रको देनेवाला होताहै । लक्ष्मणाकी पुष्य नक्षत्रमें उखाडी हुई जडको दूधमें पीसकर उसके रसको वा दूधमें पकाकर उसकी भांफको सूर्य के सामने प्रातःकाल खडे हो नासिकाद्वारा सूंघे अथवा केवल लक्ष्मणाको पीसं उसका रस निकाल पूर्वको मुख कर अपने दक्षिण नथनेमें घरकी देहलीपर खडे होकर अपने हाथसेही टपकावे । यह सव कर्म अथवा अन्य पुंसवन कर्म ब्राह्मणोंके और आप्न पुरुषों के आज्ञानुसार अनुष्ठान करने चाहिये ॥ ३५ ॥ ३६ ॥ . गर्भस्थापन औषध । अतऊ गर्भस्थापनानिव्याख्यास्यामः ॥ ३७॥ अब गर्भके स्थापन करनेकी विधिको कथन करते हैं ॥ ३७ ॥ ऐन्द्रीब्राह्मीशतवाऱ्यासहस्रवी-अमोघाअव्यथाशिघावला अरिष्टावाट्यपुष्पीविष्वक्सेनाकान्ताचआसामोषधीनांशिरला दक्षिणनेपाणिनाधारणमताभिश्चैवसिद्धस्थपयसालर्पिषोवापानमताभिश्चैवपुष्येपुण्यस्नानंसदाचैताभिः समालभेत ॥३८॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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