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________________ (७६२) चरकसंहिता-मा० टी०i तिसौक्ष्म्यादतीन्द्रियत्वाच्च । तेषांसंयोगविभागवायुःपरमाणूनांकारणकर्मस्वभावश्चतदेतच्छरीरसंख्यातमनेकावयवंदृष्टमेकत्वेनसङ्गःसंख्यातम् । पृथक्त्वेनापवर्ग:तत्रप्रधानमशक्तं सर्वसत्त्वातिवृत्तौनिवर्त्तते इति ॥ २३ ॥ परमाणु भेदसे शरीरके अवयव असंख्य होतेहैं क्योंकि वह भेद अत्यन्त अधिक अत्यन्त सूक्ष्म और अतीन्द्रिय होते हैं। उन परमाणुओंके संयोग विभागमें वायु.. कर्म और स्वभावही कारण होताहै। इसप्रकार शरीरको संख्याका वर्णन कियागया। उन अनेक अवयवोंसे बनाहुआ यह शरीर एक दिखाई देताहै और यह कर्माधीन मोहवश एकत्वके संगको प्राप्त हुवा है । इन सब भावोंके पृथक् २ विचा' रनेसे और असंगसे मोक्ष प्राप्त होताहै।सम्पूर्ण अवयवोंमें यथोचित दृष्टि देनेसे ज्ञान उत्पन्न होकर सम्पूर्ण भावोंकी निवृत्ति होजाती है ॥ २३ ॥ अध्यायका उपसंहार ।। शरीरसंख्यांयोवेदसावयवशाभिषक् । तदज्ञाननिमित्तेनसमोहेननयुज्यते ॥ २४ ॥ अमूढोमोहमलैश्चनदोषैरभिभूयते। निदोषोनिःस्पृहःशान्तःप्रशाम्यत्यपुनर्भवः ॥२५॥ इति चरकसं० शारीर० शरीरसंख्यः शारीरः समाप्तः ॥७॥ यहांपर अध्यायके उपसंहारमें श्लोक हैं । जो वैद्य सम्पूर्ण अवयवोंसे शरीरकी संख्याको जान लेताहै वह अज्ञाननिमित्तक मोहसे युक्त नहीं होता । वह बुद्धिमान मूढतारहित मोहमूलक दोषासे दूषित नहीं होसकता तथा निर्दोष नि:स्पृह और शान्तिको प्राप्त होकर मोक्षको प्राप्त होत है ॥ २४ ॥ २५ ॥ । इति श्रीमहर्षिचरक० शारीरस्थाने भाषाटीकायांशरीरसंख्याशारीरं नामसप्तमोऽध्यायः॥७॥ ___ अष्टमोऽध्यायः। अथातोजातिसूत्रीयंशारीरंव्याख्यास्यामइतिहस्माहभगवानात्रेयः। अब हम जातिसूत्रीय शतिरकी व्याख्या करते हैं इसप्रकार भगवान् आत्रेयजी कथन करने लगे। उत्तम संतान होनेका उपाय । . स्त्रीपुरुषयोरव्यापनशुक्रशोणितयोनिगर्भाशययोःश्रेयसीप्रजामिच्छतोस्तन्निवृत्तिकरंकमोपदेक्ष्यामः ॥१॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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