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________________ शारीरस्थान-अ०४. . (७१३) चतुर्थोऽध्यायः। अथातो सहतींगविक्रांतिशारीरंव्याख्यास्यास इति हस्माहभगवानात्रेयः। यव हम महत्ती गर्भावक्रांति शारीरकी व्याख्या करते हैं इसप्रकार भगवान आने कथन करनेलगे। आत्रेयजीकी प्रतिज्ञा। यतश्चगर्भःसम्भवतियस्मिंश्चगर्ससंज्ञायद्विकारश्चगोयथाचानुपूर्व्याभिनिवर्ततकुक्षीयश्चास्यवृद्धिहेतुर्यतश्चास्यावृद्धिर्भवतियतश्चजायमानःकुक्षौविनाशंप्राप्नोतियतश्चकात्स्न्येलाविनश्यन्विकृतिमापद्यतेतदनुव्याख्यास्यामः ॥१॥ जिससे गर्भ उत्पन्न होताहै जिसलिये उसकी गर्भसंज्ञाहै, जिन द्रव्योंके रूपान्तर होनेको गर्भ कहतेहैं, जिस प्रकार कुक्षीमें गर्भ प्राप्त होताहै, जो उसके बढनेके हेतु हैं जिप्तप्रकार वह वृद्धिको प्राप्त नहीं होता, निकारणोंसे गर्भ उत्पन्न होकर भी कुक्षीमें ही नष्ट होजाताहै, जिनकारणोंसे सम्पूर्ण नष्ट न होकर विकृत होजाताहै इनसवको हम क्रमपूर्वक वर्णन करतेहैं ॥१॥ गर्भकी उत्पत्तिका कारण । माततापिततआत्मतःलात्स्यतो रसतःसवतइत्येतेभ्योभावेक्यासमुदितेभ्योगर्भःसम्भवति । तस्यययेऽवयवायतोयतः सम्भवतःसम्भवन्तितान्विभज्यसातजादीनवयवान्पृथकपथगुरुमग्रे । शुक्रशोणितजीवसंयोगेतुखलुकुक्षिगतेगर्भसंज्ञा भवति ॥ २॥ यह गर्भ माता, पिता, आत्मा, सात्म्य और रस तथा सत्त्व इन सब भावोंसेही उत्पन्न होताहै । उस गर्भके जो २ अवयव जिसजिस प्रकार जैसे २ उत्पन्न होतेहैं उनसबके मातृज आदि अवयवोंको विभागपूर्वक अलग अलग प्रथम कथन करचुकेहैं । वीर्य और रजके तथा जीवका संयोग होकर कुक्षीमें प्राप्त होनेका नामही: गर्भ है ॥२॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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