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________________ ( ७१२) चरकसंहिता - मा० टी० । जब मनुष्यकी इन्द्रिय तथा वाक्चेष्टा निवृत्त होजाती हैं और मनुष्य सोजाता है उस अवस्थामें भी सुखदुःखको ग्रहण करता है अर्थात् सोजानेपर इन्द्रिय आदिकोंकी चेष्टा बंद हो जाती है उस समय भी यह सुखदुःखका स्वप्नावस्थामें अनुभव करता है इसलिये इसको अज्ञ नहीं कहना चाहिये | आत्मज्ञानके विना कोई भी ज्ञान स्वतंत्र नहीं है, और कोई भाव बिना किसी हेतुके स्वयं अकेला प्रवृत्त नहीं होता। तात्पर्य यह हुआ कि इन्द्रिय आदि व्यापार और चंचलताको वंशमें करलेनेसे मनुष्यको साक्षात्कार ज्ञानका प्रकाश होजाता है । और इन्द्रियोंके रुक जानेपर भी यह मनुष्य स्वप्नावस्थामें अनेक प्रकारके ज्ञानका अनुभव करता रहता है । इसलिये आत्मा कभी भी अज्ञानी नहीं कहा जासकता ॥ ३२ ॥ ३३ ॥ तस्माज्ज्ञःप्रकृतिश्चात्माद्रष्टाकारणमेवच । सर्वमेतद्भरद्वाज ! निर्णीतंजहिसंशयामीति ॥ ३४ ॥ सो इसप्रकार ज्ञेय, प्रकृति, आत्मा, द्रष्टा और कारण इन सबके समुदायका • वर्णन कियागया है । अब तुम संशयको त्यागदो ॥ ३४ ॥ अध्यायका संक्षिप्तवर्णन | हेतुगर्भस्य निवृत्त वृद्धौजन्मनिचैव यः । पुनर्वसुमतिर्याचभरद्वाजमतिश्वया ॥ ३५ ॥ प्रतिज्ञाप्रतिषेधश्वविशदश्चात्मनिर्णयः । गर्भावक्रान्तिमुद्दिश्यखड्डी कंसम्प्रकाशितम् ॥ ३६ ॥ इतिखुड्डीकागर्भावसंक्रांतिः शारीरः समाप्तः ॥ ३ ॥ : यहां अध्याय की पूर्ति में दो श्लोक हैं कि इस खुड्डीकागर्भावक्रान्ति शारीर नामक अध्यायमें गर्भकी उत्पत्ति, कारण, वृद्धि और जन्म, इन सबके हेतु, आत्रेय भगवान्का मत और भरद्वाजका प्रस्ताव, प्रतिज्ञा, प्रतिबंध, स्पष्ट निर्णय, यह सब विधिवत् दर्शन किये गये हैं ॥ ३५ ॥ ॥ २६ ॥ इति श्रीमहर्षिचरक शारीरस्थाने भाषा • खुड्डी कागर्भावक्रान्तिशारीरं नाम तृतीयोऽध्यायः ॥ ३॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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