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________________ चरकसंहिता - भा० टी० ! नुष्यप्रभवस्तस्मान्मनुष्यविग्रहेणजायते । यथागगप्रभवः यथाचाश्वोऽश्वप्रभवइत्येवंयदुक्तसप्रेस सुदायात्मकइतितदयु - क्कंयदिचमनुष्योमनुष्यप्रभवः कस्ता जडान्ध कुन्ज सूकवा मन - मिन्मिनव्यङ्गोन्मत्त कुष्ठकिलासिभ्याजाताः पितृसदृशरूपानभ: वन्ति । अथात्रापिबुद्धिरेवंस्यात्स्वेनैवायमात्माचक्षुषारूपाणि ( ७०८ ) चेत्तिश्रोत्रेणशब्दान्प्राणेनगन्धान्रसनेन रसान्स्पर्शनेन स्पर्शान बुद्धबा बोद्धव्यमित्यनेन हेतुनाजडादिभ्योजाताः पितृसदृशाः भवन्ति । अत्रापिप्रतिज्ञाहानि दोषः स्यादेवमुक्केह्यात्मासत्स्विन्द्रियेषुज्ञः स्यादसत्स्वज्ञोयत्रचैतदुभयं सम्भवतिज्ञत्वमज्ञत्वञ्च सविकारप्रकृतिकश्चात्मनिर्विकारोज्ञश्च । यदिचदशनादभिरात्माविषयान्वेत्तिनिरिन्द्रियोदर्शनादिविरहादज्ञः स्यादज्ञत्वाञ्चकारणमकारणत्वाच्चानात्मेतिवाग्वस्तुमात्रमेतद्वचनमनर्थकंस्यादितिहोवाच भरद्वाजः ॥ २३ ॥ यह सुनकर भरद्वाज कहने लगे कि यदि अनेक प्रकारके गर्भकारक भावोंके समु दायसेही गर्भकी उत्पत्ति होती है तो यह गर्भ सबसे मिलाहुआ किसप्रकार होता है - अर्थात् यह सब भाव गर्भ में किसप्रकार मिलजाते हैं । और मिलजानेपर भी इनके समुदाय से मनुष्य के आकारका किस प्रकार होजाता है अर्थात् वह गर्भ मनुष्यरूपमें किस प्रकार प्रगट होता है । और इन संपूर्ण भावों से उत्पन्न हुआ गर्भ मनुष्यसे मनुष्य हुआ कैसे कहा जाता है। यदि आप ऐसा मानते हैं कि मनुष्यसे मनुष्य प्रगट होता है यह मनुष्य विग्रहसे अर्थात् जैसे- गौसे गौ, घोडेसे घोडा, पशु जगतमें उत्पन्न होता है । इसीप्रकार मनुष्यसे मनुष्यके आकारवाला गर्भ होता है । तो जो पहिले आत्मादिक समुदायले गर्भकी उत्पत्ति कह आये हैं वह अयुक्त होजायगा और मनुष्यसे मनुष्य - मनुष्य के आकारही पैदा होता है तो क्या कारण है कि माता पिता उस प्रकारके न होतेहुए भी संतान उनके आकारकी नहीं होती । जैसे जड, अधा, कुवडा, गूंगा, बवना, मिनमिनाह, व्यंग, उन्मत्त, कुष्ठी और किलास आदि रोगवाले मनुष्यों की संतान अपने मातापिताके समान अंधी, कुबडी आदि क्यों नहीं होती यदि इनमें भी आपका ऐसा भाव हो कि मातापिताके किसी इन्द्रियहीन होनेसे संतानके मनुष्यत्वमें फर्क नहीं पडता आत्मा अपने नेत्रद्वारा रूपको देखता "
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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