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________________ चरकसंहिता - भा० टी० | अध्यायका संक्षिप्त वर्णनं । प्रश्नाः पुरुषमाश्रित्यन्त्रयोविंशतिरुत्तमाः । कतिधापुरुषीयेऽस्मिन्निर्णीतास्तत्त्वदर्शिना ॥ १५७ ॥ -इत्यग्निवेशकृतेतन्त्रे चरकप्रतिसंस्कृते कतिधः पुरुषीयंशाररिसमाप्तम् १ यहां अध्यायकी पूर्त्तिमें कहते हैं कि इस कविधापुरुषीय अध्याय में तत्त्वज्ञाता महर्षि आयजीने पुरुषका आश्रय लेकर तेईसप्रकार के उत्तम प्रश्नों के उत्तररूप र्णयको विधिपूर्वक कथन किया है ॥ १५७ ॥ इति श्रीमहाचर • शा० स्था० भा० टी० कतिधापुरुषीयशारीरं नाम प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥ ( ६८६ ) द्वितीयोऽध्यायः । अथातोऽतुल्यगोत्रीयं शारीर व्याख्यास्याम इति हस्माह भगवानात्रेयः । अब हम अतुल्यगोत्रीय शारीरनामक अध्यायकी व्याख्या करते हैं इस प्रकार -अगवान आत्रेयजी कथन करने लगे । गर्भके चतुष्पाद में प्रश्न । अतुल्यगोत्रस्यरजःक्षयान्तेरहोथिंसृष्टं मिथुनी कृतस्य । किंस्याचतुष्पात्प्रभवञ्च षड्भ्योयत्स्त्री गर्भत्वमुपैति पुंसः ॥ १ ॥ } जब स्त्री रजोधर्म से शुद्ध हो लेवे अर्थात् रजोदर्शनके चार दिन उपरांत अपनेसे अन्य गोत्र वाले पुरुषके संयोगसे एकान्तस्थान में रात्रि के समय गर्भाधान करनेसे उस ऋतुसे शुद्धद्धई खोक गर्भाशय में जो शारीरिक द्रव्य गिरता है तथा चतुष्पाद् और छः रसोंसे प्रगट होनेवाला तो जो द्रव्य है अर्थात् जो चतुष्पाद् गर्भ कहा जाता है और गर्भत्वको प्राप्त होता है वह क्या पदार्थ है ॥ १ ॥ . सम्प्रति गर्भादिसर्गमभिधातुमतुल्य १ शरीरस्यादिवर्ग आध्यत्मिक चिकित्सां वर्णयित्वा गोत्रीयोभिधोयते । २ रहो विसृष्टमिति विजनेविसृष्टम् ।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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