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________________ शारीरस्थान-अ० १. (६८१) अथवा जो विषय आत्मांके साथ न मिले अर्थात् अपने स्वभावके अनुकूल न हो उसको असाम्य कहते हैं । १२७ ।। मिथ्यातहीनयोगेभ्योयोव्याधिरुपजायते शब्दादीनांसविज्ञेयोव्याधिरैन्द्रियकोबुधैः ॥ १२८ ॥ .. शब्दादिक विषयोंका श्रवणादि इन्द्रियोंसे मिथ्यायोग, अतियोग और हीनयोग होनेसे जो व्याधियें उत्पन्न होतीहैं उनको बुद्धिमान् लोग ऐन्द्रियकव्याधि कहते है।। १२८ ॥ वेदनानामशातानामित्यतेहेतवःस्पृताः । सुखहेतुर्मतस्त्वेकःसमयोगःसुदुर्लभः ॥ १२९ इसप्रकार असात्म्य पदार्थोंका सेवन अथवा मिथ्यायोगसे सेवन व्याधि उत्पन्न करनेका कारण होता है । और विधिवत् समानयोगसे सेवन करना सुखका हेतु होता है परन्तु सम्पूर्ण पदार्थोंका समयोगसे सेवन करना भी दुर्लभ है॥ १२९ ॥ सुखदुःखोंके प्रधानहेतु । नेन्द्रियाणिनचैवार्थाःसुखदुःखस्यहेतवः। हेतुस्तुसुखदुःखस्य योगोदृष्टश्चतुर्विधः ॥ १३०॥ सन्तीन्द्रियाणिसन्त्यायोगोन चनचास्तिरुक् । नसुखकारणं तस्माद्योगएवचतुर्विधः ॥१३१ ।। सुख और दुःखके हेतु न तो सम्पूर्ण इन्द्रिय है और न अर्थही(इन्द्रियों के विषय) हैं। किन्तु चतुर्विध योगका होनाही सुखदुःखका हेतु होताहै।अर्थात् तीन प्रकारके असाम्य बोगोंका होना दुःखका कारण होताहै और केवल समयोगका होनाही सुखका कारण होताहै।सम्पूर्ण इन्द्रिय भी हों और इन्द्रियों के विषय भी हों परंतु पूर्वोक्त चारप्रकारका योग न होनेसे न सुख होताहै और न ब्याधिही होसकती है इसलिए सम्पूर्ण सुखदुःखोंका कारण यह चतुर्विध योगही होताहै ॥१३०॥१३॥ नात्मेन्द्रियमनोबुद्धिगाचरंकमवाविन सुखंदुःखंयथायच्चबोद्धव्यतत्तथोच्यते ॥ १३२ ॥ यद्यपि सुख और दुःख आत्मा, इंद्रिय,मन और बुद्धिक गोचर हैं परंतु कर्मके संयोग विना वह नहीं होसकते कर्मही सुख और दुःखका इनके साथ संयोग कराताहै जिसप्रकार कर्म मुखदुःखके संयोगको कराताहै उसका कथन करतेहैं।१३२॥ . . स्पर्शनेन्द्रियसंस्पर्शःस्पर्णीमानसएवच द्विविधःसुखदुःखानां । वेदनानांप्रवर्तकः ॥ १३३ ॥इच्छाद्वेषात्मिकातृष्णासुखदुःखा
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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