SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 713
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सरस, सौसम,सफेदकस्यदन, अर्जुन, विजयसार कायफल, वांस, पर . विमानस्थान-अ०८. चादिति । शीतन्तुमधुसर्पिामुपसंस्कत्यपित्तविकारणेददितिकषायस्कन्धः ॥ १६५॥ भव कषायस्कंधको कथन करते हैं प्रियंगु, शारिवा, आमकी गुठली, पाटला, सटमडंगा, लोध्र, मोचरस, मंजीठ, धावेके फूल, कमलकी केशर, भारङ्गी, जामुन आमकी छाल, पाखर, कपीतन, गूलर, पीपल,भेलावेकी वृक्षकी छाल, अश्मंतक, सिरस, सौसम,सफेदकत्था,तेंदु,चिरौंजी और वेर इनःसव वृक्षोंकी छाल इसीप्रकार खदिर, सववन, तिनस, स्पंदन, अर्जुन, विजयसार, अरिमेद, एलवाल, फेवटीमोथा, कदंब, शल्लकी,जींगन, कांस; कसेरू, राजकसेरू,कायफल, वांस, पझाख, अशोक, शाल, घावी, भोजपत्र, खापुष्प, जण्डीवृक्ष, माचिका, उन्नाव, अजकर्ण, अश्वकर्णः स्फूरजत, बहेडा, कुम्भीक,कमलगट्टे, विस (कमलकी जड), मृणाल, वालखतूर, डिकवार, इन सबको अथवा अन्य कषायवर्गमें कहेहुए औषधद्रव्योंको कूट छानकर पानीसे धोकर पानी में थोडासा पकाकर और वनसे छानकर इसमें शहद और घृत मिला पित्तज रोगीको आस्थापनवस्ति देवे । इति कषायस्कन्धः ॥ १६५ ॥ तत्र श्लोकाः। षड्वर्गाःपरिसंख्यातायएतेरसभेदतः।आस्थापनमभिप्रेत्यतानं विद्यात्सायौगिकान् ॥ १६६ ॥ ॥ सर्वतोहिप्रणिहिताः सर्वरोगेषुजानता । सर्वात्रोगान्नियच्छन्तिभ्यआस्थापन हितम् ॥ १६७ ॥ यहां पर श्लोक हैं रस भेदसे जो उपरोक्त छः वर्गाका कथन किया है यह आस्थापनबस्तिकर्ममें सब प्रकार हितकारी होतेहैं । यदि भास्थापनवस्तिके क्रमको जाननेवाला वैद्य जिनके लिये आस्थापनवस्ति हितकारी हो इन सार्वयोगिक द्रव्यो द्वारा बस्विकर्म करनेसे रोगियों के सम्पूर्ण रोगोंको नाश करदेवाहै ॥१६६॥१६७४ येषांयेषांप्रशान्त्यर्थयेयेनपरिकीर्तिताः। . . . . . द्रव्यवर्गाविकाराणांतेषांतेपरिकोपकाः ॥ १६ ॥ परन्तु यह ध्यान रखना चाहिये कि जो द्रव्य जिस १ विकारको शान्त नहीं करता उसके द्वारा आस्थापन करना विकारोंको' उलटा कुपित करता है। जैसे चातप्रधान मनुष्यको रूक्ष पदार्थों द्वारा स्विकर्म करना हानिकारक होताहै। और कारधान मनुष्पको रूक्ष पदाथो दाग बस्विकर्म हितकर होताहै ।।.१६८
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy