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________________ सूत्रस्थान-अ०.१.. स्नेह तुल्य अर्थ करता है उसको सामान्य कहते हैं और विपर्यय. अर्थात् उलटे अर्थक करनेवालेको विशेष कहते हैं ॥ ४२ ॥ ४३ ॥ . . . आयुर्वेदका अधिकार। . .. · सत्त्वमात्माशरीरञ्चत्रयमेतस्त्रिदण्डवतालोकस्तिष्ठतिसंयोगा• तत्रसवप्रतिष्ठितम् ॥ ४४ ॥ सपुमांश्चेतनंतचतञ्चाधिकरणं : स्मृतम् । वेदस्यास्यतदहिवेदोऽयंसम्प्रकाशितः ॥ ४५ ॥ मन शरीर आत्मा इन तीनोंका तीन दंडोंकी समान परस्पर संबंध है इन तीनोंके संबंधको वैद्यक शास्त्रमें पुरुष कहाजाताहै और सम्पूर्ण संसार इन तीनोंके संबंधसे ही है । इस वैद्यक शास्त्रमें इन तीनोंके संबंधरूप पुरुषको ही पुमान, चेतन और आयुर्वेदका अधिकरण मानते हैं । और इस पुरुषके लिये ही इस आयुर्वेदका प्रकाश किया गया है ॥ ४४ ॥ ४५ ॥ विविध द्रव्य । खादीन्यात्मामनःकालोदिशश्चद्रव्यसंग्रहः । सेन्द्रियंचेतनद्रव्यंनिरिन्द्रियमचेतनम् ॥ ४६॥ आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, आत्मा, मन, काल, दिशा इन सबको द्रव्य कहते हैं ! इंद्रियवालोंको चेतन और इंद्रियरहितको अचेतन कहते हैं। मनुष्य पशु पक्षी आदि इंद्रियवालोंको चेतन और वृक्षादि जड पदार्थोंको अचेतन कहते हैं ॥ ४६ ॥ गुण कर्म । सागुर्वादयोबुद्धिः प्रयत्नान्ताःपरादयः । गुणाःप्रोक्ताःप्रयत्नादिकमतेविंदमुच्यते ॥४७ ॥ शब्द, स्पर्श, गंध, रस, रूप, ( यह अर्थ अर्थात् इंद्रियोंके विषय कहे जातेहैं) और गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, मंद, तीक्ष्ण, स्थिर, सर, मृदु, कठिन, विशद, पिच्छल, खर, मसूण, स्थूल, सूक्ष्म, सांद्र, द्रव यह बीस द्रव्यके गुण है। बुद्धि, इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, प्रयल, पर, अपर, युक्ति, संख्या, संयोग, मिभाग, पृथक्त्व, परिमाण, संस्कार, अभ्यास यह सब गुण कहाते हैं और प्रयल चेष्टा आदि कर्म कहे जाते हैं ॥ ४७ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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